________________
( २६ )
भावकुतूहलम् -
[ पुत्रभाव:
वृश्चिक राशिमें बृहस्पति और शुक्र हों, लग्नमें बुध, शनि हों तो वह मनुष्य गृहमें कदापि पुत्रको नहीं देखे । लग्नेश शत्रुगृही वा शत्रु युक्त हो शनि चंद्रमा उसे देखें तथा सूर्य छठा वा दूसरा हो तो अपुत्र होवे अथवा शनि शत्रुभावमें बुध, सूर्य चंद्रमासे दृष्ट हो यह ऐसाही लग्र में पापदृष्ट हो तो भी अपुत्र करता है ॥ ११ ॥ १२ ॥ मन्दालयेऽर्के खलदृष्टियुक्ते लग्नेपि वा पापखगस्य वर्गः अपत्यहानिः कुलदेव कोपात्पुरात नैरंगभृतांनिरुक्ता १३
शनिकी राशि १० । ११ में सूर्य पापग्रहों से दृष्ट या युक्त हो अथवा पापग्रहके (वर्ग) राशि अंशकों के लग्नमें हो तो कुलदेवताके कोप से संतानकी हानि कहनी, यह फल मनुष्यों को प्राचीनाचार्योंने कहा है ॥ १३ ॥
अपत्यभावे यदि मङ्गलः स्यादपत्यराशिं विनिहन्ति सद्यः ॥ अस्तांशके पापयुते सुतेशे तदा न सन्तानसुखं वदन्ति ॥ १४ ॥
पंचम स्थान में मंगल हो तो जितने पुत्र हों सभीको नाश करता है यदि सप्तम भावांशपति एवं पंचमेश पापयुक्त हों तो संता नका सुख नहीं होता ऐसा आचार्य कहते हैं ॥ १४॥ गुरोः सुतागारपतिः सपापो बलेन हीनो मनुजो विपुत्रः ॥ अरावपापे निधने तदीशः सुतेन हीनो मनुजस्तदानीम् ॥ १५ ॥
बृहस्पत्तिसे पंचमभावका स्वामी पापयुक्त एवं बलहीन हो तो मनुष्य अपुत्र होता है तथा छठे भाव में शुभग्रह, षष्ठेश अष्टम हो तो भी वही फल है ॥ १५ ॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com