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षष्ठः ३]
भाषा का सम् ।
(२७)
तथैव भानुः खलु पंचमस्थो जातं च जातं विनिहन्ति बालम् ॥ लग्नेश्वरः पापयुतः सुतेशो व्ययाष्टमे पुत्रसुखेन हीनः ॥ १६ ॥
निर्बल सूर्य पंचम हो तो जितने बालक हों उन सबको नाश करे वा लग्नेश पापयुक्त और पंचमेश ८ । १२ में हो तो पुत्रसुखसे रहित रहै ॥ १६ ॥
यदा सूर्यारशनैश्चराणां दोषोऽथ वै जन्मनि मानवानाम् ॥ वंशेशकोपेन सुतस्य नाशं तदा वदन्तीति पुराणविज्ञाः ॥ १७ ॥
यदि जन्मकाल में संतान हानिकारक राहु, सूर्य शनैश्वरका दोष हो अर्थात् ये ग्रह संतानहानिकारक हों तो (वंशेश) कुलदेवता के कोप से संतानका नाश जानना उसके मनोहर पूजादि करने से संतानका सुख होता है यह पुराणाचार्योका मत है ॥ १७ ॥ पुत्रार्थ देवतोपासना |
बुधशुक्रकृते दोषे सुताप्तिः शिवपूजनात् ॥ गुरुचन्द्रकृते दोषे यंत्रमंत्रौषधीबलात् ॥ १८ ॥ यदि बुध संतानहानि दोषकारक हो तो शिवके ( पूजन ) आराधन करने से पुत्रप्राप्ति होवे । बृहस्पति, चंद्रमाका दोष हो तो अनेक प्रकार यंत्र, मंत्र, साधन तथा दिव्य औषधिके प्रयोगसे संतान सुख होता है ॥ १८ ॥
राहुणा कन्यकादानं भानुना हरिकीर्त्तनम् ॥ शिखिना कपिलादानं मन्दाराभ्यां षडंगकम् ॥ १९ ॥ संतान बाधाकारक राहु हो तो किसीको किसी प्राकर कन्या दान करना, सूर्यका दोष हो तो विष्णुका कीर्तन भगवान्का आराधन
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