________________
( २४ )
भावकुतूहलम् -
पुत्रप्राप्त्यप्राप्तिविचारः ।
शुक्राङ्गारनिशाकरा द्वितनुगाः सन्ता न सौख्यं नृणामादौ संजनयंति जन्मसमये चापं विना प्रायशः ॥ मीने वा धनुषि प्रमाणपटवः सन्तानाभावे यदा सन्तानं न तदामनन्ति विबुधाः पुंसां विशेषादिह ॥५ ॥ शुक्र, मंगल, चंद्रमा द्विस्वभाव राशियों में विशेषतः पंचमभावमें हों तो प्रथमहीसे संतान का सुख देते हैं, परन्तु विशेषतः धनके होनेमें उक्त फल नहीं देते, बृहस्पति के राशि मीन अथवा धन पंचमभावमें हो तो मनुष्योंको पंडितजन संतान सुखविशेष नहीं कहते ॥ ५ ॥
[ पुत्रभाव:--
नपुंसकयोगः ।
अर्के कर्कगते हरौ भृगुसुते मन्दे तुलायामजे चंद्रे यस्य नरस्य जन्मसमये वीर्यच्युतोऽसौ भवेत् ॥ लग्ने चन्द्रयुते गुरौ रविसुते पुत्रेऽपि वीर्यच्युतो जीवेङ्गे सरवौ मृतावपि कुजे कीबर्क्षगे कण्टके ॥६॥
जिस मनुष्य के जन्मसमय में सूर्य कर्कका, शुक्र सिंहका, शनि तुलाका, चंद्रमा मेषका हो तो वह (वीर्यच्युत) नपुंसक किंवा धातु क्षीणवाला होवे अर्थात् क्कीबतासे संतान न होने पावें तथा लग्नमें चंद्रमासहित बृहस्पति, पंचममें शनि हो तो वीर्यक्षीण होवे अथवा बृहस्पति लग्नमें सूर्यसहित तथा अष्टममें मंगल हो और नपुंसक ग्रहकी राशि केंद्र में हो तो नपुंसक होवे ॥६॥ कन्याराशिगते लग्ने बुधमन्दावलोकिते ॥ शनिक्षेत्रगते शुक्रे वीर्यहीनो नरो भवेत् ॥ ७ ॥ लग्नमें कन्या राशि हो उसपर बुध, शनिकी दृष्टि हो तथा शुक्र
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com