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सम्यक्-दर्शन
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नहीं कर पाता। यह अवस्था महाभारत में दुयाधन के उस वचन के तुल्य है, जिसमें कहा गया है किधर्म को जानते हुए भी मेरी उसमें प्रवृत्ति नहीं होती और अधर्म को जानते हुए भी मेरी उससे निवृत्ति नहीं होती है।26 ।
3. दीपक-सम्यक्त्व- यह वह अवस्था है, जिसमें व्यक्ति अपने उपदेशसे दूसरों में तत्त्वजिज्ञासा उत्पन्न कर देता है और परिणामस्वरूप होने वाले उनके यथार्थ-बोध का कारण बनता है। दीपक-सम्यक्त्व वाला व्यक्ति वह है, जो दूसरों को सन्मार्ग पर लगा देने का कारण बन जाता है, लेकिन स्वयं कुमार्ग का ही पथिक बना रहता है, जैसे कोई नदी के तीर पर खड़ा व्यक्ति किसी मध्य नदी में थके हुए तैराक का उत्साहवर्द्धन कर उसे पार लगने का कारण बन जाता है, यद्यपि न तो स्वयं तैरना जानता है और न पार ही होता है।
सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण एक अन्य प्रकार से भी किया गया है, जिसका आधार कर्म-प्रकृतियों का क्षयोपशम है। जैन-विचारणा में अनन्तानुबंधी (तीव्रतम) क्रोध, मान, माया (कपट), लोभ तथा मिथ्यात्व-मोह, मिश्र-मोह और सम्यक्त्व-मोह, सात कर्म- प्रकृतियाँ सम्यक्त्व (यथार्थ-बोध) की विरोधी हैं। इसमें सम्यक्त्व-मोहनीय को छोड़ शेष छह कर्म-प्रकृतियाँ उदय में होती हैं, तो सम्यक्त्व का प्रकटन नहीं हो पाता। सम्यक्त्व-मोह मात्र सम्यक्त्व की निर्मलता और विशुद्धि में बाधक है। कर्म-प्रकृतियों की तीन स्थितियाँ हैं- 1. क्षय 2. उपशम और 3.क्षयोपशम। इसीआधार पर सम्यक्त्वका यह वर्गीकरण किया गया है - 1. औपशमिक-सम्यक्त्व 2. क्षायिक-सम्यक्त्व और 3. क्षायोपशमिक-सम्यक्त्व।
___ 1. औपशमिक-सम्यक्त्व-उपर्युक्त (क्रियमाण) कर्म-प्रकृतियों के उपशमित (दबाई हुई) होने पर जो सम्यक्त्व गुण प्रकट होता है, वह औपशमिक-सम्यक्त्व है। इसमें स्थायित्व का अभाव होता है। शास्त्रीय-दृष्टि से यह अन्तर्मुहूर्त (48 मिनट) से अधिक नहीं टिकता। उपशमित कर्म-प्रकृतियाँ (वासनाएँ) पुनः जाग्रत होकर इसे विनष्ट कर देती हैं।
2. क्षायिक-सम्यक्त्व- उपर्युक्त सातों कर्म-प्रकृतियों के क्षय हो जाने पर जो सम्यक्त्वरूप यथार्थ-बोध प्रकट होता है; वह क्षायिक-सम्यक्त्व है। यह यथार्थ-बोध स्थायी होता है और एक बार प्रकट होने पर कभी नष्ट नहीं होता। शास्त्रीय-भाषा में यह सादि एवं अनन्त होता है।
3. क्षायोपशमिक-सम्यक्त्व - मिथ्यात्वजनक उदयगत (क्रियमाण) कर्मप्रकृतियों के क्षय हो जाने पर और अनुदित (सत्तावान या संचित) कर्म-प्रकृतियों का उपशम हो जाने पर जो सम्यक्त्व प्रकट होता है, वह क्षायोपशमिक-सम्यक्त्व है। यद्यपि सामान्य दृष्टि से यह अस्थाई ही है ; फिर भी एक लम्बी समयावधि (छाछठ सागरोपम से कुछ अधिक ) तक अवस्थित रह सकता है।
औपशमिक और क्षायोपशमिक-सम्यक्त्वकी भूमिका में सम्यक्त्व के रस का पान
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