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वर्णाश्रम व्यवस्था
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वर्णाश्रम व्यवस्था
वर्ण-व्यवस्था - भारतीय नैतिक-चिन्तन के सामाजिक प्रश्नों में वर्ण-व्यवस्था कभी महत्वपूर्ण योगदान है। सामाजिक नैतिकता का प्रश्न वर्ग-व्यवस्था से निकट रूप सम्बन्धित है, अतः यहाँ वर्ण-व्यवस्था के सम्बन्ध में विचार कर लेना आवश्यक है।
जैनधर्म और वर्ण-व्यवस्था - जैन आचार-दर्शन में साधना-मार्ग का प्रवेशद्वार बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए खुला है। उसमें धनी अथवा निर्धन, उच्च अथवा का कोई विभेद नहीं है। आचारांगसूत्र में कहा है कि साधना-मार्ग का उपदेश सभी के लिए समान है। जो उपदेश एक धनवान् या उच्च कुल के व्यक्ति के लिए है, वही उपदेश गरीब या निम्नकुलोत्पन्न व्यक्ति के लिए है ।' उसके साधना - तप में हरिकेशी बल जैसे चाण्डाल, अर्जुनमाली जैसे घोर हिंसक और पुनिया जैसे अत्यन्त निर्धन व्यक्ति का भी वही स्थान है, जो स्थान इन्द्रभूति जैसे वेदपाठी ब्राह्मणपुत्र अथवा दशार्णभद्र और श्रेणिक जैसे नरेशों और धन्ना तथा शालिभद्र जैसे श्रेष्ठिरत्नों का है। जैनागमों में वर्णित हरिकेशी बल और अनाथी मुनि के कथानक जाति-भेद तथा धन के अहंकार पर करारी चोट करते हैं । धर्मसाधना का उपदेश तो उस वर्षा के समान है, जो ऊँचे पर्वतों पर, नीचे खेत-खलिहानों पर, सुन्दर महल-अटारियों पर और झोपड़ियों पर समान रूप से होती है। यह बात अलग है कि उस वर्षा के जल को कौन कितना ग्रहण करता है । साधना का राजमार्ग तो उसका है, जो उस पर चलता है, फिर वह चलने वाला पूर्व में दुराचारी रहा हो या सदाचारी, धनी रहा हो या निर्धन, उच्चकुलोत्पन्न रहा हो या निम्नकुलोत्पन्न । जैन आचार्य श्रुति के इस कथन को स्वीकार नहीं करते हैं कि ब्राह्मणों की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से, क्षत्रियों की बाहु से, वैश्यों की जाँघ से तथा शूद्रों की पैरों से होती है। 2 जन्म के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रइ-प्रधान वर्ण-व्यवस्था जैनधर्म को स्वीकार नहीं है। जैनाचार्यों का कहना है कि सभी मनुष्य योनि से ही उत्पन्न होते हैं, अतः ब्रह्मा के विभिन्न अंगों से उनकी उत्पत्ति बताकर शारीरिक अंगों की उत्तमता या निकृष्टता के आधार पर वर्ण-व्यवस्था का विधान नहीं किया जा सकता । शारीरिक-विभिन्नता के आधार पर भी किया जाने वाला वर्गीकरण मात्र स्थावर, पशु-पक्षी इत्यादि के विषय में ही सत्य हो सकता है, मनुष्यों के सम्बन्ध में नहीं । जन्मना सभी मनुष्य समान हैं। मनुष्यों की एक ही जाति है । ' जन्म के आधार पर जाति का निश्चय नहीं किया जा सकता। मत्स्यगंधा (मल्लाह की कन्या) के गर्भ में महर्षि पाराशर
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