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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
इसके अतिरिक्त, दीघनिकाय के लक्खणसुत्त में बुद्ध ने अन्य निम्न जीविकाओं को निन्दनीय माना है- 1. तराजू एवं बटखरे की ठगी, अर्थात् कम-ज्यादा तौलना, 2. माप की ठगी, 3. रिश्वत, 4. वंचना, 5. कृतघ्नता, 6. साचियोग (कुटिलता), 7. छेदन, 8. वध, 9. बंधन, 10. डाका एवं लूटपाट की जीविका।61 8. अनर्थ-दण्ड-परित्याग
जीवनव्यवहार में प्रमुखतया दो प्रकार की क्रियाएँ होती हैं - 1. सार्थक और 2. निरर्थक । सार्थक क्रियाएँ वे अनिवार्य क्रियाएँ हैं, जिनका सम्पादित किया जाना व्यक्ति
और समाज के हित में आवश्यक है। शेष अनावश्यक क्रियाएँ निरर्थक क्रियाएँ हैं। सार्थक सावद्य-क्रियाओं का करना अर्थदण्ड है, जबकि निरर्थक पापपूर्ण प्रवृत्तियों का करना अनर्थदण्ड है, क्योंकि इसमें आत्मा को निष्प्रयोजन ही पापकर्म का भागी बनाया जाता है। फिर भी, जगत् में ऐसे अज्ञानीजनों की कमी नहीं है, जो बिना किसी प्रयोजन के हिंसा और असत्यसम्भाषण आदि दुष्प्रवृत्तियाँ करते हैं। अनर्थदण्डके अनेक उदाहरण हैं, जैसे-स्नान आदि कार्यों में जल याआवश्यकतासे अधिक अपव्यय करना, आवश्यकता से अधिक वृक्ष की पत्तियों या फूलों को तोड़ना, कार्य की समाप्ति के बाद भी नल की टोटी, बिजली के पंखे अथवा बत्तियों को खुला छोड़ देना, भोजन मे जूठा डालना अथवा सम्भाषण में आदतन अपशब्दों का प्रयोग करना, बीड़ी, सिगरेट आदि अहितकर द्रव्यों का सेवन करना, व्यर्थ चिन्ता करना आदि। निरर्थक प्रवृत्तियाँ अविवेकी और अनुशासनहीन जीवन की द्योतक हैं, अतः जैनधर्म में गृहस्थ-उपासक के लिए निष्प्रयोजन पापपूर्ण प्रवृत्तियों का निषेध है। श्रावक के अनर्थदण्डविरमणव्रत में साधक निष्प्रयोजन पापपूर्ण प्रवृत्तियों का परित्याग करता है। निष्प्रयोजन पापपूर्ण प्रवृत्तियाँ चार प्रकार की हैं 62
____ 1.अपध्यान (अशुभ चिन्तन) इसके दो रूप हैं-(अ) आर्तध्यान, जो चार प्रकार का है - 1. इष्टवियोग की चिन्ता, 2. अनिष्टसंयोग की चिन्ता, 3. रोग-चिन्ता, 4. निदान अथवा किसी अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति की तीवेच्छा। (ब) रौद्रध्यान - क्रूरतापूर्ण विचार करना, जैसे-मैं उसे मार डालूँगा, उसके धन का नाश करवा दूंगा आदि।
2. पापकर्मोपदेश (पापकर्म करने की प्रेरणा) - जिस प्रेरणा को पाकर या जिस कथन को सुनकर व्यक्ति पापकार्य करने के लिए प्रेरित हो, वह पापकर्मोपदेश है। व्यक्तियों अथवा देशों को लड़ने के लिए प्रेरित करना, अथवा व्यक्तियों को हिंसा, चौर्यकर्म, पर-स्त्री एवं वेश्यागमन आदि अशुभ प्रवृत्तियों में प्रवृत्त होने के लिए प्रेरणा देना पापकर्मोपदेश हैं।
3. हिंसक-उपकरणों का दान - व्यक्ति अथवा राष्ट्रों को हिंसक-शस्त्रास्त्र
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