Book Title: Bharatiya Achar Darshan Part 02
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 548
________________ 546 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन सामाजिक और वैयक्तिक-जीवन में सच्ची शान्ति और वास्तविक सुख प्राप्त किया जा सकता है। वैषम्य-निराकरण के सूत्रविषमताएँ विषमताओं के निराक- निराकरण का पुरुषार्थ-चतुष्टय से रण के सिद्धान्त परिणाम सम्बन्ध 1. आर्थिक-विषमता अपरिग्रह (परिग्रह साम्यवाद अर्थ-पुरुषार्थ का परीसीमन) (सम-वितरण) 2. सामाजिक- अहिंसा शान्ति एवं अभय धर्म (नैतिकता) विषमता (युद्ध एवं संघर्षका पुरुषार्थ अभाव) 3. वैचारिक-विषमता अनाग्रह (अनेकांत) वैचारिक-समन्वय धर्म और मोक्ष एवं समाधि पुरुषार्थ का समन्वित रूप 4. मानसिक- अनासक्ति आनन्द काम-पुरुषार्थ विषमता (वीतरागावस्था) मोक्ष-पुरुषार्थ __इन सूत्रों के मूल्यों और उनके परिणामों का विस्तृत विवेचन पीछे किया जा चुका है। संक्षेप में, समालोच्य आचार-दर्शन द्वारा प्रस्तुत विषमता-निराकरण के सभी सूत्र सामाजिक एवं वैयक्तिक-जीवन में समत्व, शान्ति एवं सन्तुलन स्थापित कर व्यक्ति को दुःखों एवं विषमताओं से मुक्त करते हैं। वर्तमान युग में नैतिकता की जीवन-दृष्टि - इन विषमताओं के कारणों एवं उनके निराकरण के सूत्रों के विश्लेषण के अन्त में यह पाते हैं कि इन सबके मूल में मानसिकविषमता है। मानसिक-विषमताआसक्तिजन्य है, आसक्ति का ही दूसरा नाम है। वैयक्तिकजीवन में आसक्ति के एक रूप (जिसे दृष्टिराग कहा जाता है ) से ही साम्प्रदायिकता, धर्मान्धताऔर विभिन्न राजनीतिक-मतवादों एवं आर्थिक-विचारणाओं का जन्म होता है, जो सामाजिक-जीवन में वर्ग-भेद एवं संघर्ष पैदा करते हैं। आसक्ति के दूसरे रूप, संग्रहवृत्ति और विषयासक्ति से असमान वितरण और भोगवादका जन्म होता है, जिसमें वैयक्तिक एवं सामाजिक-विषमताओं और सामाजिक-अस्वास्थ्य (रोग) के कीटाणु जन्म लेते हैं और उसी में पलते हैं। ___ वर्तमान युग के अनेक विचारकों ने आसक्ति के बदलेअभाव को ही सारी विषमताओं का कारण माना और उसकी भौतिक-पूर्ति के प्रयास को ही वैयक्तिक एवं सामाजिक - विषमता के निराकरण का आवश्यक साधन माना, इसमें आंशिक सत्य है, फिर भी इसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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