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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
हित हो।10 वैदिक-परम्परा में भी सत्यको अहिंसामय बनाने का प्रयास हुआहै। जब सत्य
और अहिंसा में विरोध उत्पन्न हो जाए और उस स्थिति में बोलनाभी आवश्यक हो तथा नहीं बोलने से संदेह उत्पन्न हो, तो असत्य बोलना ही श्रेयस्कर माना गया है। 103 महाभारत का यह दृष्टिकोण आचारांगसूत्र के पूर्वोक्त दृष्टिकोण से अत्यन्त साम्य रखता है। मनु ने भी ऐसी अपवादात्मक-स्थिति में सामान्यतया मौन रहने का संकेत किया है। मनु के अनुसार, यदि हिंसक अन्याय से भी पूछे, तो कोई उत्तर नहीं देना चाहिए, अथवा पागल के अनुसार अस्पष्ट रूप से हाँ-हूँ कर देना चाहिए।104 इस प्रकार, हम देखते हैं कि सत्य-महाव्रत के संदर्भ में जैन-परम्परा और वैदिक-परम्पराका दृष्टिकोण काफी समान है। ब्रह्मचर्य-महाव्रत के संदर्भ में भी वैदिक-परम्परा में स्वीकृत मैथुन के आठ अंग जैन-परम्परा में बताई गई ब्रह्मचर्य की नव-बाड़ों से काफी अधिक निकटता रखते हैं। गुप्ति एवं समिति
पूर्वोक्त महाव्रतों के रक्षण एवं उनकी परिपुष्टि करने के लिए जैन-परम्परा में पांच समितियों और तीन गुप्तियों का विधान है। इन्हें अष्ट-प्रवचनमाता भी कहा जाता है।105 ये आठ गुण श्रमण-जीवन का संरक्षण उसी प्रकार करते हैं, जैसे माता अपने पुत्र का करती है, इसीलिए इन्हें माता कहा गया है। इनमें तीन गुप्तियाँ श्रमण-साधना का निषेधात्मक-पक्ष प्रस्तुत करती हैं और पांच समितियाँ विधेयात्मक-पक्ष प्रस्तुत करती हैं।
तीन गुप्तियाँ-गुप्ति शब्द गोपन से बना है, जिसका अर्थ है-खींच लेना, दूर कर लेना। गुप्ति शब्द का दूसरा अर्थ टैंकने वाला या रक्षा कवच भी है। प्रथम अर्थ के अनुसार मन, वचन और कायाको अशुभप्रवृत्तियों से हटा लेना गुप्ति है और दूसरे अर्थ के अनुसार, आत्माकी अशुभसे रक्षा करना गुप्ति है। गुप्तियां तीन हैं - 1. मनोगुप्ति, 2. वचन-गुप्ति और 3. काय-गुप्ति । 106
___ 1. मनोगुप्ति - मन को अप्रशस्त, कुत्सित एवं अशुभ विचारों से दूर रखना मनोगुप्ति है। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार, श्रमण सरम्भ, समारम्भ और आरम्भ की हिंसकप्रवृत्तियों में जाते हुए मन को रोके, 107 यही मनोगुप्ति है। श्रमण को दूषित वृत्तियों में जाते हुए मन को रोककर मनोगुप्ति का अभ्यास करना चाहिए।
2. वचनगुप्ति - असत्य, कर्कश, अहितकारी एवं हिंसाकारी भाषा का प्रयोग नहीं करना वचनगुप्ति है। नियमसार के अनुसार, स्त्री - कथा, राजकथा, चोर-कथा, भोजन-कथा आदि वचन की अशुभ प्रवृत्ति एवं असत्य वचन का परिहार वचनगुप्ति है।108 उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है कि श्रमण अशुभ प्रवृत्तियों में जाते हुए वचन का विरोध करे।109
___ 3. कायगुप्ति- नियमसार के अनुसार, बन्धन, छेदन, मारण, आकुंचन तथा
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