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आध्यात्मिक एवं नैतिक-विकास
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सेवा के लिए क्रियाएँ करता है। 26 समस्त बन्धनों या संयोजनों के नष्ट हो जाने के कारण उसके समस्त क्लेशों या दुःखों का प्रहाण हो जाता है। वस्तुतः, यह जीवन्मुक्ति की अवस्था है। जैन --विचारणा में इस अर्हतावस्था की तुलना सयोगीकेवली-गुणस्थान से की जा सकती है। दोनों विचारधाराएँ इस भूमि के सम्बन्ध में काफी निकट हैं। महायान और आध्यात्मिक-विकास
____ महायान-सम्प्रदाय में दशभूमिशास्त्र के अनुसार आध्यात्मिक-विकास की निम्न दस भूमियाँ (अवस्थाएँ) मानी गई हैं - 1. प्रमुदिता, 2. विमला, 3. प्रभाकरी, 4. अर्चिष्मती, 5. सुदुर्जया, 6. अभिमुक्ति, 7. दूरंगमा, 8. अचला, 9. साधुमति और 10. धर्ममेधा। हीनयानसे महायान की ओर संक्रमण-काल में लिखे गए महावस्तु नामक ग्रन्थ में 1. दुरारोहा, 2. बद्धमान, 3. पुष्पमण्डिता, 4. रुचिरा, 5. चित्त-विस्तार 6. रूपमति, 7. दुर्जया, 8. जन्मनिदेश, 9. यौवराज और 10. अभिषेक नामक जिन दस भूमियों का विवेचन है, वे महायान की पूर्वोक्त दस भूमियों से भिन्न हैं। यद्यपिमहायान का दसभूमियों का सिद्धान्त इसी मूलभूत धारणा के आधार पर विकसित हुआ है, तथापि महायान ग्रन्थों में कहीं दस से अधिक भूमियों का विवेचन मिलता है। असंग के महायान-सूत्रालंकार में और लंकावतारसूत्र में इन भूमियों की संख्या ग्यारह है। महायान-सूत्रालंकार में प्रथम भूमि को अधिमुक्ति-चर्याभूमि कहा गया है और अन्तिम बुद्धभूमि या धर्ममेधा का भूमियों की संख्या में परिगणन नहीं किया गया है। इसी प्रकार, लंकावतारसूत्र में धर्ममेधाऔर तथागत-भूमियों (बुद्धभूमि) को अलग-अलग माना गया है।
1.अधिमुक्तचर्याभूमि-यों तो अन्य ग्रन्थों में प्रमुदिता को प्रथम भूमि माना गया है, लेकिन असंग प्रथम अधिमुक्त- चर्याभूमि का विवेचन करते हैं, तत्पश्चात् प्रमुदिताभूमिका अधिमुक्तचर्याभूमि में साधक को पुद्गल-नैरात्म्य और धर्मनैरात्म्य का अभिसमय (यथार्थज्ञान) होता है। यह दृष्टि-विशुद्धि की अवस्था है। इस भूमि की तुलना जैनविचारधारा में चतुर्थ अविरतसम्यक्दृष्टि-गुणस्थान से की जा सकती है। इसे बोधिप्रणिधिचित्त की अवस्था कहा जा सकता है। बोधिसत्व इस भूमि में दान-पारमिता का अभ्यास करता है।
2. प्रमुदिता- इसमें अधिशील-शिक्षा होती है। यह शीलविशुद्धि के प्रयास की अवस्था है। इस भूमि में बोधिसत्व लोकमंगल की साधना करता है। इसे बोधिप्रस्थान-चित्त की अवस्था कहा जा सकता है। बोधिप्रणिधिचित्त मार्गज्ञान है, लेकिन बोधिप्रस्थानचित्त मार्ग में गम- की प्रकिया है। जैन-परम्परा में इस भूमि की तुलनापंचम एवं षष्ठ विरताविरत एवं सर्वविरत-सम्यक्दृष्टि नामक गुणस्थान से की जा सकती है। इस भूमि का लक्षण है
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