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आध्यात्मिक एवं नैतिक-विकास
12. दिगम्बर-मान्यता में इसे 'अथाप्रवृत्तिकरण' कहते हैं देखिए - तत्त्वार्थराजवार्त्तिक - 9/1-13
13. दर्शन और चिन्तन, पृ. 269
विशेष विवेचन के लिए देखिए - मिथ्यात्व प्रकरण
14.
15. गोम्मटसार, जीवकाण्ड - 17
16. गोम्मटसार, जीवकाण्ड - 25
17. सम प्राबलेम्स आफ जैन साइकोलाजी - पृ. 156, गोम्मटसार, जीवकाण्ड - 24
18. योगबिन्दु, 270
19. बोधिपंजिका, पृ. 421, उद्धृत, पृ. 119
20. योगबिन्दु, 273-274
21. 25 विकथाएँ, 25 कषाय और नोकषाय, 6 मन सहित पाँचों इन्द्रियाँ, 5 निद्राएँ, 2 राग और द्वेष, इन सबके गुणनफल से यह 37500 की संख्या बनती है। 22. स्टडीज इन जैन फिलासफी, पृ. 278
23. गोम्मटसार, गाथा 61
24. ज्ञानसार त्यागाष्टक ( दर्शन और चिन्तन, भाग 2, पृ. 275 पर उद्धृत) 25. पं. सुखलालजी ने भी इसे मार्गानुसारी अवस्था से तुलनीय माना है।
26. देखिए - विनयपिटक, चुल्लवग्ग, 4/4
27. दर्शन और चिन्तन (गुजराती), पृ. 1022
28. भगवद्गीता - डॉ. राधाकृष्णन्, पृ. 313
29. गीता, 14/10
30. गीता, 14/5
31. गीता 7/13
32. गीता, 9/30
33. वही 1/15
34. वही 7/16,7/18 (इसमें उदारे शब्द का प्रयोग अपेक्षाकृत है ।)
35. वही 7/20
36. गीता, 2/43, 2/44
37. वही,
2/7
38. वही, 2/40
39. वही, 6/37
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