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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
दूसरा शिक्षाव्रत मानकर दसवाँ स्थान दिया गया है। दिगम्बर-परम्परा में इस सम्बन्ध में
और भी आंतरिक-मतभेद हैं, जिनका उल्लेख करना यहाँ आवश्यक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि, इस सबके आधार पर नैतिक-व्यवस्था के मौलिक-स्वरूप में कोई अन्तर नहीं आता है।
पाँच अणुव्रत 1. अहिंसाणुव्रत
गृहस्थ का प्रथम व्रत अहिंसा-अणुव्रत है, जिसमें गृहस्थ-साधक स्थूल हिंसा से विरत होता है। इसी कारण, इसका एक नाम 'स्थूल प्राणातिपातविरमण' भी है। उपासकदशांग-सूत्र में अहिंसाणुव्रत का प्रतिज्ञा-सूत्र इस प्रकार है 'स्थूल प्राणातिपात का शेष समस्त जीवन के लिए मन, वचन, कर्म से त्याग करता हूँ, न मैं स्वतः स्थूल प्राणातिपात करूँगाऔर न दूसरों से कराऊँगा।' प्रतिक्रमणसूत्र में यही प्रतिज्ञासूत्र अधिक स्पष्ट रूप में इस प्रकार है, मैं किसी भी निरपराध-निर्दोष स्थूल त्रस प्राणी की जान-बूझकर संकल्पपूर्वक मन-वचन-कर्म से न तो स्वयं हिंसा करूँगा और न कराऊँगा।'36
निष्कर्ष यह निकलता है कि गृहस्थ-साधक को निरपराधत्रसप्राणी की संकल्पपूर्वक की जाने वाली हिंसा से विरत होनाहोता है। इस प्रतिज्ञा के पारिभाषिक-शब्दों की व्याख्या के आधार पर हमें जैन-गृहस्थ के अहिंसाणुव्रत के स्वरूप का यथार्थ बोध हो जाता है। 1. जैनाचार-दर्शन में गृहस्थ-साधक के लिए स्थूल हिंसा का निषेध किया गया है। प्राणी दो प्रकार के हैं - एक, स्थूल और दूसरे, सूक्ष्म। सूक्ष्म प्राणी चक्षु आदि से जाने नहीं जा सकते हैं अतः गृहस्थ-साधक को मात्र स्थूल प्राणियों की हिंसा से बचने का आदेश है। स्थूल 'शब्द का लाक्षणिक-अर्थ है-मोटे रूप से। जहाँ श्रमण-साधक के लिए अहिंसाव्रत का परिपालन अत्यन्त चरम सीमा तक या सूक्ष्मता के साथ करना अनिवार्य है, वहाँ गृहस्थसाधक के लिए अहिंसा की मोटी-मोटी बातों के परिपालन का ही विधान है। कुछ आचार्यों ने स्थूल हिंसा को त्रस प्राणियों की हिंसा माना है।
__ जैन-तत्त्वज्ञान में प्राणियों का स्थावर और त्रस- ऐसा द्विविध वर्गीकरण है। जिन प्राणियों में स्वेच्छानुसार गति करने का सामर्थ्य होता है, वे 'स' कहे जाते हैं और जो स्वेच्छानुसार गति करने में समर्थ नहीं हैं, ऐसे प्राणी स्थावर कहे जाते हैं, जैसे-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति का शरीर धारण करने वाले। इन्हें एकेन्द्रिय जीव भी कहते हैं, क्योंकि इनमें मात्र स्पर्श नामक एक और प्रथम इन्द्रिय ही होती है। शेष, रसना एवं स्पर्शऐसी दो इंद्रियों वाले प्राणी, जैसे-लट आदि; रसना, स्पर्श एवं नासिका- ऐसी तीन इन्द्रियों वाले प्राणी, जैसे-चींटी आदि; स्पर्श, रसना, नासिका एवं चक्षु-ऐसी चार इन्द्रियों वाले बर्र
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