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भारतीय आचार - दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
पर पंच औदुम्बरफल के त्याग का विधान कर उसकी कठोरता को कम किया है। वसुनन्दिश्रावकाचार में सप्त व्यसनों के त्याग का विधान है। वर्तमान युग में वसुनन्दि के विधान को ही सामान्यतया स्वीकार किया जाता है। सम्यक्त्व ग्रहण के साथ ही पाँच औदुम्बर फलों एवं सप्त व्यसनों का त्याग जैन गृहस्थ-साधक के लिए आवश्यक है। 23 पंच औदुम्बर फलत्याग - (1) पीपल का फल (2) गूलर का फल (3) वट का फल (4) पिलखन का फल और (5) अन्जीर | जैन-गृहस्थ के लिए इनका उपयोग वर्जित माना गया है, क्योंकि इन फलों के अन्दर सूक्ष्म कीड़े होते हैं। सप्तव्यसन 24 - त्याग- ( 1 ) जुआ एक निन्दित कर्म है। इसके कारण न केवल वैयक्तिक, वरन् पारिवारिक जीवन भी संकट में पड़ जाता है, अतः
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गृहस्थ-साधक के लिए वर्जनीय है। (2) मांसाहार-मांस भक्षण निर्दयता को जन्म देता है। मांसाहारी साधक हिंसा से भी विरत नहीं हो सकता, अतः मांसाहार का त्याग अहिंसाणुव्रत के पालन की पूर्व भूमिका है। (3) सुरापान - मद्यपान जैन- गृहस्थ के लिए वर्जित है। जैनाचार्यों ने इसकी निन्दा में विस्तृत साहित्य का सर्जन किया है। आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार, जिस प्रकार अग्नि की एक चिनगारी से घास का ढेर राख हो जाता है, उसी प्रकार मदिरापान से विवेक, संयम, ज्ञान, सत्य, शौच, दया आदि सभी गुण नष्ट हो जाते हैं। 25 वेश्यागमन - वेश्यागमन परिवार-संस्था का ही मूलोच्छेद करता है। सामाजिक एवं राष्ट्रीय-जीवन पर यह एक कलंक है। (5) शिकार - शिकार खेलना क्रूरता का प्रतीक है। अहिंसा की महान साधना में तत्पर होने की पूर्व भूमिका के रूप में इसका त्याग आवश्यक है । (6) चौर्य-कर्म - चोरी की कुटेव भी गृहस्थ-धर्म का विनाश करती है। गृहस्थ-धर्म में सम्पत्ति का वैयक्तिक-स्वामित्व का जो अधिकार है, चौर्य-कर्म उसी अधिकार का मूलोच्छेद करता है, साथ ही वह लोक - निन्दनीय और राज्य के द्वारा दण्डनीय अपराध भी है, सामाजिक- शान्ति एवं व्यवस्था को भंग करता है, अतः उसे वर्ज्य माना गया है। (7) परस्त्रीगमन - यह विषयासक्तिवर्द्धक एवं सामाजिक-व्यवस्था का विनाशक है। परस्त्रीगमन
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याग करने पर ही व्यक्ति गृहस्थ जीवन का अधिकारी बन सकता है।
पाँच औदुम्बर फलों और सप्त व्यसनों का त्याग अणुव्रत-साधना की पूर्व तैयारी के रूप में माना जा सकता है। यह अहिंसा, अचौर्य और स्वपत्नीसन्तोष - अणुव्रत की ही प्रारम्भिक रूपरेखा है। इनका पालन करने वाला साधक ही अणुव्रत की साधना के मार्ग में आगे बढ़ सकता है।
गृहस्थ - जीवन की व्यावहारिक नीति
गृहस्थ- जीवन में कैसे जीना चाहिए, इस सम्बन्ध में थोड़ा निर्देश आवश्यक है । गृहस्थ-उपासक का व्यावहारिक जीवन कैसा हो, इस सम्बन्ध में जैन आगमों में यत्र-तत्र
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