________________
भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
-
आचार्य (शिक्षक) के प्रति कर्त्तव्य - ( 1 ) उत्थान - उनको आदर प्रदान करना चाहिए। (2) उपस्थान – उनकी सेवा में उपस्थित रहना चाहिए। (3) शुश्रूषा-उनकी शुश्रूषा करनी चाहिए। (4) परिचर्या - उनकी परिचर्या करनी चाहिए। (5) विनयपूर्वक शिल्प सीखना चाहिए ।
288
शिष्य के प्रति आचार्य का प्रत्युपकार - ( 1 ) विनीत बनाते हैं। (2) सुन्दर शिक्षा प्रदान करते हैं। (3) हमारी विद्या परिपूर्ण होगी, यह सोचकर सभी शिल्प और सभी श्रुत सिखलाते हैं । (4) मित्र - अमात्यों को सुप्रतिपादन करते हैं। (5) दिशा (विद्या) की सुरक्षा करते हैं।
पत्नी के प्रति पति के कर्त्तव्य - ( 1 ) पत्नी का सम्मान करना चाहिए। (2) उसका तिरस्कार या अवहेलना नहीं करनी चाहिए। (3) परस्त्रीगमन नहीं करना चाहिए (इससे पत्नी का विश्वास बना रहता है ) | ( 4 ) ऐश्वर्य (सम्पत्ति) प्रदान करना चाहिए। (5) वस्त्र - अलंकार प्रदान करना चाहिए।
पति के प्रति पत्नी का प्रत्युपकार - (1) घर के सभी कार्यों को सम्यक् प्रकार से सम्पादित करती है। (2) परिजन (नौकर-चाकर) को वश में रखती है। (3) दुराचरण नहीं करती है। (4) (पति द्वारा) अर्जित सम्पदा की रक्षा करती है। (5) गृह-कार्यों में निरालस और दक्ष होती है ।
मित्र के प्रति कर्त्तव्य - (1) उन्हें उपहार (दान) प्रदान करना चाहिए। (2) उनसे प्रिय-वचन बोलना चाहिए। (3) अर्थ-चर्या, अर्थात् उनके कार्यों में सहयोग प्रदान करना चाहिए। (4) उनके प्रति समानता का व्यवहार करना चाहिए। (5) उन्हें विश्वास प्रदान करना चाहिए ।
मित्र का प्रत्युपकार - (1) उसकी भूलों से रक्षा करते हैं (अर्थात् सही दिशानिर्देश करते हैं) । (2) उसकी सम्पत्ति की रक्षा करते हैं। (3) विपत्ति के समय शरण प्रदान करते हैं। (4) आपत्काल में साथ नहीं छोड़ते हैं। (5) अन्य लोग भी ऐसे (मित्रयुक्त) पुरुष का सत्कार करते हैं।
सेवक के प्रति स्वामी के कर्त्तव्य - ( 1 ) उसकी योग्यता और क्षमता के अनुसार कार्य लेना चाहिए। (2) उसे उचित भोजन और वेतन प्रदान करना चाहिए। (3) रोगी होने पर उसकी सेवा-शुश्रूषा करनी चाहिए। (4) उसे उत्तम रसों वाले पदार्थ प्रदान करना चाहिए। (5) समय-समय पर उसे अवकाश प्रदान करना चाहिए।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org