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सम्यक् - तप तथा योग-मार्ग
आत्मा से अलग करने की क्रिया को अविपाक-निर्जरा कहते हैं और तप ही वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा अविपाक - निर्जरा होती है।
इस प्रकार, तप का प्रयोजन है - प्रयासपूर्वक कर्म - पुद्गलों को आत्मा से अलग कर आत्मा की स्वशक्ति को प्रकट करना और यही शुद्ध आत्म-तत्त्व की उपलब्धि है । यही आत्मा का विशुद्धिकरण है, यही तप- साधना का लक्ष्य है। उत्तराध्ययनसूत्र में भगवान् महावीर तप के विषय में कहते हैं कि तप आत्मा के परिशोधन की प्रक्रिया है। 29 आबद्ध कर्मों के क्षय करने की पद्धति है । तप के द्वारा ही महर्षिगण पूर्व पापकर्मों को नष्ट करते हैं। 1 तप का मार्ग राग-द्वेष - जन्य पाप-कर्मों के बंधन को क्षीण करने का मार्ग है, जिसे मेरे द्वारा सुनो | 32 इस तरह, जैन - साधना में तप का उद्देश्य या प्रयोजन आत्म-परिशोधन, पूर्वबद्ध कर्मपुद्गलों का आत्म-तत्त्व से पृथक्करण और शुद्ध आत्म-तत्त्व की उपलब्धि ही सिद्ध होता है। वैदिक-साधना में तप का प्रयोजन - वैदिक-साधना, मुख्यतः औपनिषदिकसाधना का लक्ष्य आत्मन् या ब्रह्मन् की उपलब्धि रहा है। औपनिषदिक-विचारधारा स्पष्ट उद्घोषणा करती है, तप से ब्रह्म खोजा जाता है, 33 तपस्या से ही ब्रह्म को जानो । 34 इतना ही नहीं, औपनिषदिक विचारधारा में भी जैन- विचार के समान तप को शुद्ध आत्म-तत्त्व की उपलब्धि का साधन माना गया है। मुण्डकोपनिषद् के तीसरे मुण्डक में कहा है, यह आत्मा (जो ज्योतिर्मय और शुद्ध है) तपस्या और सत्य के द्वारा ही पाया जाता है। 35
औपनिषदिक-परम्परा एक अन्य अर्थ में भी जैन - परम्परा से साम्य रखते हुए कहती है कि तप के द्वारा कर्म-रज दूर कर मोक्ष प्राप्त किया जाता है | मुण्डकोपनिषद् के द्वितीय मुण्डकका ग्यारहवाँ श्लोक इस सन्दर्भ में विशेष रूप से द्रष्टव्य है। कहा है - " जो शान्त विद्वान्जन वन में रहकर भिक्षाचर्या करते हुए तप और श्रद्धा का सेवन करते हैं, वे विरज हो ( कर्म - रज को दूर कर) सूर्य द्वार (ऊर्ध्व मार्गों) से वहाँ पहुँच जाते हैं, जहां वह पुरुष (आत्मा) अमृत्य एवं अव्यय - आत्मा के रूप में निवास करता है।'
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वैदिक-प - परम्परा में जहाँ तप आध्यात्मिक-शुद्धि अथवा आत्म-शुद्धि का साधन है, वहीं उसके द्वारा होने वाली शरीर और इन्द्रियों की शुद्धि के महत्व का भी अंकन किया गया है। उसका आध्यात्मिक जीवन के साथ ही साथ भौतिक - जीवन से भी सम्बन्ध जोड़ा गया है और जीवन के सामान्य व्यवहार के क्षेत्र में तप का क्या प्रयोजन है, यह स्पष्ट दर्शाया गया है। महर्षि पतंजलि कहते हैं, तप से अशुद्धि का क्षय होने से शरीर और इन्द्रियों की शुद्धि (सिद्धि) होती है। 37
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बौद्ध-साधना में तप का प्रयोजन - बौद्ध-साधना में तप का प्रयोजन पापकारक अकुशल धर्मों को तपा डालना है। इस सन्दर्भ में बुद्ध और निर्ग्रन्थ उपासक सिंह सेनापति का
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