Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 20
________________ भारत की खोज न जो ऊपर चढ़े हैं उनके लिए नहीं जो नीचे बैठे हैं उनके लिए फल पक्क गए हैं अ और फल बुला रहे हैं। मैं बूढ़ा हो गया हूं चढ़ नहीं सकता हूं। लेकिन आत्मा मेरी वह " है। मैं इन बच्चों के लिए हैरान हो रहा हूं की यह पांच सात वच्चे कितावें खोले क्यों बैठे हैं। जव फल तुला रहे हों और जव चढ़ने की ताकत हो तव जो नीचे रह जाए रूगड़ हैं, अस्वस्त हैं, बीमार हैं। मैं इन बच्चों के लिए चिंतित हूं। आंख बंद क र के मैं इन्हीं के लिए सोच रहा था की क्या करूं की यह भी वृक्ष पर चढ़ जाएं। ले किन जिन्होंने फलों की पुकार नहीं सूनी वह मेरी पूकार सूनेंगे। यह जो जीवन को जीने की कला, कुछ और तरह की शिक्षा होगी। जीवन को जीने का मार्ग बच्चों को किसी और दिक्षा में शिक्षित करेगा। लेकिन हम अब तक जो करते रहे हैं वह जीवन की कला नहीं वह जीवन से भागने की कला है। छोटे-छोटे बच्चों को दीक्षा दी जाती हैं मुलक में। इससे बड़ा कोई अपराध नहीं हो सकता। एक संन्यासी मेरे पास मेहमान था। उनकी उम्र होगी कोई बावन वर्ष । मेरे पास दो चार दिन रहे, मेरी बातें समझीं तो सरल हो गए, सीधी-सीधी बात करने लगे और मुझसे बोले की मैं कई अडचनों में हूं। क्योंकि जब मैं बारह साल का था तब मुझे दीक्षा दे दी गई और मैं संन्यासी हो गया और मेरी बुद्धि बारह साल पर ही अटक के रह गई। क्योंकि उसके बाद मैंने कुछ अनुभव नहीं किया जिंदगी के सब अनुभव मेरे लिए वर्जनित हो गए। तो मैं ने कहा फिर भी तुम मुझे कहों की तुम्हें कौन-कौ न से अनुभव की इच्छा हैं। तो उन्होंने कहा और सव तो वाद मैं कहूंगा सवसे पहले तो मुझे सिनेमा देखना हैं। मैंने कहा-'यह क्या कहते हैं आप सिनेमा!' उन्होंने कहा की मैं वड़ा हैरान रहता हूं मैं किसी टाकिज के भीतर अव तक नहीं गया। दरवाजों पर भीड़ लगी दिखती हैं टिकीट घर के सामने क्यू लगा हुआ हैं। हजारों लोग क्या देख रहे हैं? वहां क्या है? मैं एक वार भीतर जाकर देखना चाहता हूं। यह वारह साल के एक बच्चे की जिज्ञासा है। यह बावन साल के बुद्धिमान आदमी की जिज्ञासा नहीं। लेकिन क्रोध किस पर किया जाए इस आदमी पर या उन न समझों पर जिन्ह ने इसे बारह साल में इसे दीक्षा करके और संन्यासी बना दिया। मैंने पड़ोस के एक मित्र को बुलाया और उनसे कहा इन्हें आप ले जाकर टाकिज दि खा लाए। उन्होंने कहा क्षमा करीए जिस धर्म को मैं मानता हूं उसी धर्म के यह संन् यासी हैं और किसी ने मुझे देख लिया की मैं इन्हें लेकर आया हूं तो मैं भी झंझट में पड़ जाऊंगा। अगर यह कोट पतलून पहनने को राजी हो तो मैं कोट पतलून ले आ ता हूं। यह इनका दंड कमंडल ले कर मैं नहीं ले जा सकता हूं। कोट पतलून पहनने को वह राजी न हुए। क्योंकि उन्होंने कहा कोई कोट पतलून पहने देख लेगा तो फि र वड़ी मुशकील हो जाएगी। फिर मैंने कहा फिर भी कोई रास्ता निकालो। क्योंकि इ नकी इतनी सरल सी जिज्ञासा पूरी न हो पाए तो यह मोक्ष नहीं जा सकेगें। मरते व क्त भी जव चारों तरफ मोक्ष की चर्चा चल रही होगी तव यह कीसी सिनेमा टाकि ज के आस-पास घूम रहे होगें। चित्त वहां घूमता हैं जहां अटका रह जाता हैं। जिसे हम नहीं जान पाते चित्त वहीं अटका रह जाता हैं। Page 20 of 150 http://www.oshoworld.com

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