________________
भारत की खोज
खड़ा हो गया होगा और गीता उस सवाल का उत्तर थी लेकिन जब अर्जुन ने सवाल खड़ा किया था तो कृष्ण ने कोई पुरानी किताब खोलकर समाधान नहीं खोजा था । वे नहीं गए थे कि खोल लेते वेद और वेद पढ़कर सुनाने लगते अर्जुन को । एक समस्या सामने खड़ी थी अर्जुन के । युद्ध था, युद्ध से भागने का मन था, हिंसा थ की, हिंसा से छूटने का मन था, अपने ही प्रियजन थे, उनके हत्या करने का सवाल था
और अर्जुन का मन डांवांडोल हो गया है। तो कृष्ण कोई पुरानी किताब खोजने न हीं चले गए । कृष्ण ने उस समस्या का सामना किया एनकाउटर किया। एक जवाब दया, वह जवाब लिख कर हम बैठे हुए हैं। और गांधी के सामने कोई समस्या हो तो गीता माता को खोलकर बैठ जाएंगे। खतरनाक है यह प्रवृति। सवाल नए हैं, किता बें सब पुरानी हैं किताबें नई कैसे हो सकती हैं। लिखी गई कि पुरानी हो गई। कोई उत्तर दिया गया कि पुराना हो गया। सभी उत्तर पुराने हैं क्योंकि देते ही पुराने हो जाएंगे। और सब सवाल नए हैं ।
और नया सवाल नई चेतना की मांग करता है। नई चेतना का क्या अर्थ है ? नई चे तना का अर्थ है जिसके पास कोई बंधा हुआ उत्तर नहीं है, जिसके पास कोई बंधे हु ए सूत्र नहीं हैं, जिसके पास कोई जागती हुई चेतन आत्मा है और उस आत्मा को उस सवाल के सामने खड़ा कर देता है जैसे हम आईने के सामने किसी को खड़ा क र दें, जो खड़ा हो जाता है आईने में उसी की तस्वीर बन जाती है। आईने के पास अपनी कोई तस्वीर नहीं है, अपना कोई चित्र नहीं है, अपना कोई इमेज नहीं है, अ पना कोई उत्तर नहीं है । आईना यह नहीं कहता कि ऐसी शक्ल होनी चाहिए, ऐसी आंख होनी चाहिए, तब मैं चित्र बनाऊंगा ।
आईना कहता है जो भी होगा उसका चित्र बन जाएगा । आईने की सफलता यही है कि आईना बिगाड़े ना जैसा है उसको वैसा ही बता दे। नई चेतना का अर्थ है सवाल जो सामने खड़े हों, आईने की तरह हमारी चेतना के सामने स्पष्ट और साफ हो ज एं जैसे वह हैं। लेकिन वह कभी स्पष्ट नहीं होंगे अगर हमारे पास उत्तर पहले से मौ जूद हैं। उत्तर सवाल को समझने में सबसे बड़ी बाधा है। तैयार उत्तर, रेडिमेड उत्तर समस्या को समझने ही नहीं देता और समस्या को समझने ही नहीं देता, और समस् या को समझ ना सके तो समाधान कैसे खोजा जा सकता है। सच तो यह है किसी सवाल को ठीक से समझ लेना ही उसका समाधान है।
किसी सवाल को उसके पूरे जड़ों तक समझ लेना उसका सवाल का जवाब है । जवा ब तो आ जाएगा चेतना से लेकिन सवाल को समझने का सवाल है, और सवाल को हम नहीं समझ पाते क्योंकि हमारे पास जवाब सब पहले से तय हैं।
भारत की प्रतिभा में जो सबसे बड़ा अवरोध है वह उसका परंपरा, परंपरावाद है। प रंपराएं तो होंगी, लेकिन परंपरावाद बिलकुल दूसरी बात है। ट्रैडिशन तो होंगी, लेकि न ट्रैडिशनलिज्म बिलकुल दूसरी बात है। परंपराएं तो बनेंगी लेकिन अगर परंपरावादी चित्त ना हो तो हम कभी उनसे बंधे नहीं होंगे। उनसे सदा ऊपर उठते रहेंगे। उनक ट्रनसेंड करते रहेंगे, राज उनके पास जाते रहेंगे। लेकिन अगर परंपरा का वाद पैदा
Page 51 of 150
http://www.oshoworld.com