Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 86
________________ भारत की खोज मैं सोने के सिंहासन पर बैठेगा। सोने के सिंहासन पर बैठने की इच्छा थी, गरीब ब्रा ह्मण है मौका मिला नहीं. अब संन्यासी हो गया. अब मौका मिल गया वह कहता है हम नीचे नहीं बैठेगे हम सोने के सिंहासन पर बैठेंगे। आगे सिंहासन चलता है पीछे वह गरीब ब्राह्मण संन्यासी चलता है, वह कहता है पहले सोने का सिंहासन रखो फि र हम बैठेंगे। महावीर के लिए ले जाओ सोने का सिंहासन वह कहेंगे. यह क्या यहां ले आए। हम छूते नहीं अलग हटाओ यहां से। क्यों यह फर्क क्यों है। यह फर्क क्या है? यह फर्क यह है कि जो सोने के सिंहासनों से उतर कर आया है उसे सोने के सिंहासन कोई अर्थ नहीं रह गया। लेकिन जिसके मन में गरीब की जो कामना थी वह रह गई है अगर कोई भी मौका मिल जाए तो वह अमीर दिखाने के ढोंग पूरे के पूरे करेगा, व ह करेगा ही। मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि पश्चिम में अशांति है। लेकिन वह अशांति बहुत शुभ है। और भगवान वैसी अशांति इस मूल्क को कब देगा। इसकी प्रा र्थना करनी चाहिए। इस मूल्क की जो अशांति है बहुत दुःखद है, अभाव की अशांति है। उससे हम कब मुक्त हो जाएं तो अच्छा। यह मुझे दिखाई पड़ता है। कि पूरव के मुल्क धीरे-धीरे भौ तिकवादी होते चले जाएंगे। पश्चिम के मुल्क धीरे-धीरे आध्यात्मिक होते चले जाएंगे , होगा यह होगा ही। और जिन दिनों पूरव आध्यात्मवादी था वह उन दिनों था जव पश्चिम गरीब था और पूरब अमीर था। जब पूरव में भी अमीरी थी, तो पूरव आध यात्म की बातें करता था। अव अमीरी पश्चिम चली गई। पैंडूलम बदल गया है। अ व वह आध्यात्म की बातें करेंगे। अब आप नहीं। अब आपको तो कम्यूनिजम की बात करनी पड़ेगी। समाजवाद की बात करनी पड़ेगी, टैक्नोलोजी की बात करनी पड़ेगी। आपको तो बड़े उद्योग तंत्र खड़े करने पड़ेंगे। आ पको तो मटेरिलिजम की बात करनी पड़ेगी, आपको साईंस की बात करनी पड़ेगी। नहीं तो आप नासमझी में पड़ जाएंगे अमृतसर पर खड़े रह जाएंगे। और कहेंगे हरिद्व र पर लोग उतर रहे हैं तो हम चढ़ें ही क्यों? हम यहीं रूके रह जाएं जब उतरना ही है तो हम चढ़ते ही नहीं। भारत में इस तरह की बातें समझाने वाले लोग हैं व ह कहते हैं देखो पश्चिम की तरफ सब है फिर भी दुखी हैं। इसलिए किसी चीज की कोई जरूरत नहीं है। हिंदुस्तान में गरीबी की एक कल्ट, गरीबी का एक पंथ चल रहा है। दरिद्र को हम दरिद्र नारायण करते हैं। यह बड़ा खतरनाक शब्द है। दरिद्र नारायण, गरीबी को मेर नीफाई कर रहे हैं। गरीवी को ग्लोरीफाई कर रहे हैं। गरीवी को सम्मान दे रहे हैं। कह रहे हैं कि यह दरिद्र नारायण है। यह नकल है लक्ष्मी नारायण शब्द तो होता थ । दरिद्र नारायण शब्द विलकुल नया है। अभी-अभी गढ़ा गया है। लक्ष्मी नारायण श ब्द पुराना है। पैसा जिसके पास था उसको हम लक्ष्मी नारायण कहते थे। गरीव को हम कहते हैं दरिद्र नारायण है यह। Page 86 of 150 http://www.oshoworld.com

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