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भारत की खोज
पढ़ते थे, मस्जिद में हाथ जोड़े खड़े थे। अचानक पता चला कि हिंदू मुस्लिम दंगा हो
गया।
यह आदमी बदल गए इनके भीतर का आदमी बाहर आ गया। भीतर कौन बैठा हुआ ा है? भीतर हिंसा बैठी हुई है, भीतर घृणा बैठी हुई है, भीतर क्रोध बैठा हुआ है, भीतर जंगली जानवर बैठा हुआ है और उस जंगली जानवर को हम ऊपर अच्छे-अच् छे शब्दों के वस्त्र, अच्छे-अच्छे आदर्शों के वस्त्र ओढ़ कर छिपा रहे हैं। यह काम चल ाऊ व्यवस्था है। यह व्यवस्था बहुत मंहगी है । यह धोखे कि व्यवस्था है। जिंदगी भी गु जर सकती है और पता ना चले कि भीतर कौन था । और भारत ने इसी तरह पांच हजार वर्ष की एक पाखंडी संस्कृति खड़ी की है। जिस संस्कृति ने ऊपर से चीजें थो प ली हैं और भीतर का आदमी नहीं बदला है। निश्चित ही इस तरह की जबरदस्ती थोपी गई व्यवस्था प्रतिभा के विकास में अवरो ध बनेगी। प्रतिभा के लिए चाहिए इन्ट्रीग्रेशन व्यक्तित्व एक हो, इकट्ठा हो और हमने व्यक्तित्व को तोड़ दिया दो टुकड़ों में और विरोधी टुकड़ों में। हमने एक-एक व्यक्ि त की शक्ति को दो हिस्सों में बांट दिया और दोनों हिस्सों को एक दूसरे का दुश्मन बना दिया। व्यक्ति स्वयं से लड़कर ही नष्ट हो जाता है। उसके पास इतनी ऊर्जा, इतनी एनर्जी, इतनी शक्ति नहीं बच पाती कि वह कुछ और क्रिएट कर पाए, वह कुछ और सृजन कर पाए इसलिए बाहर पूरा का पूरा अनक्रिएटिव हो गया है। असृज नात्मक हो गया है। हम विध्वंस ही कर सकते हैं क्योंकि हमें हमने जो अपने भीतर किया है वही हम बाहर कर सकते हैं हम लड़ ही सकते हैं।
हिंदू मुसलमान से लड़ सकता है, मराठी गुजराती से लड़ सकता है, हिंदी बोलने वा ला गैर हिंदी बोलने वाले से लड़ सकता है। हिंदू मुसलमान से लड़ सकता है। हम सर्फ लड़ ही सकते हैं क्योंकि भीतर हम अपने से ही लड़ने की शिक्षा लिए हैं। हम अपने से ही लड़ते रहे हम भीतर ही हिंदुस्तान और पाकिस्तान में बटे हुए एक-एक आदमी अपने भीतर ही टुकड़ों में बटा हुआ है।
भारत के पास इकहरा व्यक्तित्व, जिसको हम व्यक्तित्व कहें इंडिविलिटी नहीं, इंडि विजलटी कहें जुड़ा हुआ एक आदमी नहीं है । और एक आदमी जुड़ा हुआ ना हो तो ख़ुद के खंड आपस में लड़कर शक्ति को नष्ट कर देते हैं, और शक्ति नष्ट हो जाए तो प्रतिभा कैसे विकसित हो, और प्रतिभा ना हो तो समस्याओं का समाधान कौन देगा? कौन भगवान? कौन देवता ? कौन वेद ? कौन ऋषि ? कौन मुनि देगा? समाध न हमें लाने हैं अपनी ही प्रतिभा से । और हमारी प्रतिभा क्षीण क्षीण, खंड-खंड होक र वह गई है। अगर भारत को प्रतिभा को जन्म देना है। अगर भारत को अपनी छुप हुई ऊर्जा को अपनी पूरी अभिव्यक्ति देनी है तो यह तीसरा सूत्र खयाल में रख ले ना जरूरी है और वह यह आदर्शों की बकवास बंद करो! आदमी का जो तथ्य है, य थार्थ है, वह जो वस्तुतः आदमी है उसे पहचानो । लेकिन इसका क्या यह मतलब है कि, 'मैं यह कह रहा हूं कि हिंसक हो जाओ, क्रोधी हो जाओ, घृणा से भर जाओ,
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