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भारत की खोज
ते पर चलते हैं। तो आपने देखा दोनों हाथ हिलते हैं। बाएं के साथ दायां हाथ हिल ता है, दाएं पैर के साथ बायां हाथ हिलता है । यह काहे के लिए हिल रहे हैं। चलने से इनसे कोई मतलब है। कोई मतलब नहीं है। दस लाख साल पहले हम चारों हा थ पैर से चलते थे उसकी याददाश्त बाकि रह गई शरीर में । वह शरीर उसी ढंग से काम कर रहा है।
वह मैकेनिकल हो गया है उसे पता ही नहीं कि अब उसकी कोई जरूरत ही नहीं है। आपके लूजमोश्न में आपकी गति में हाथों को हिलाने से कोई संबंध नहीं है। दोनों हाथ काट दें तो भी आप इतने ही तेज चल सकते हैं। लेकिन दाएं पैर के साथ बाय हाथ क्यों हिल रहा है ? बाएं पैर के साथ वायां हाथ क्यों नहीं हिलता ? क्योंकि प शु जो चार हाथ पैर से चलता है, उसका बायां पैर आगे उठेगा तो पीछे का दांया पैर आगे उठेगा वह दोनों के मूवमैंट का आंतरिक संबंध है। दस लाख साल से हमने चले हैं चार हाथ पैर से । लेकिन हाथ की आदत वही है । वह हाथ की आदत बता
है कि हमारा पूर्वज कभी ना कभी चारों हाथ पैर से चलता रहा है। अगर हम आदमी के भीतर खोजबीन करें तो पता चलेगा कि उसके भीतर पशु मौजूद है। और उस पशु को पहचानना जरूरी है। ताकि वह उसे बदल सके। जिसे भी हम जान ले ते हैं उसे बदलने का हक मिल जाता है।
जिसे हम नहीं जान पाते हम उसके हाथ में खिलौने होते हैं । अज्ञान के हाथ में हम खिलौने हैं। यह बिजली जल रही है । यह ही तीन हजार साल पहले वेद का ऋषी ह ाथ जोड़े इंद्र भगवान से कह रहा था कि हे भगवान नाराज मत होना बिजली मत चमकाना। आज का स्कूल का छोटा बच्चा भी यह नहीं कहेगा कि इंद्र भगवान बिज ली मत चमका। आज का छोटा-सा बच्चा भी जानता है कि विजली क्यों चमती है,
इसमें इंद्र भगवान का कोई भी कसूर नहीं है। उनका हाथ ही नहीं है बेचारों का। सच तो यह है कि वह हैं ही नहीं। तो उनका हाथ हो ही नहीं सकता। बिजली चम कती थी हम डरते थे क्योंकि अंजान थी बिजली, पहचान नहीं थी उससे कुछ | हमारे प्राणों को कंपा देती थी । कभी गिरती थी वृक्ष जल जाता था, आदमी मर जाता थ हम डरते थे, घबराते थे। सोचते थे कि इंद्र सजा दे रहा है।
अब हमने विजली को कैद कर लिया, हमने बिजली के राज को जान लिया। अब इं द्र भगवान पानी की टंकी चला रहे हैं। इंद्र भगवान घर में पंखा चला रहे हैं। अब इं द्र भगवान से कहो कि जरा पंखा ठीक से चलाएं। कोई नहीं कहेगा, क्योंकि पंखे की जो राज है बिजली वह हम जानते हैं। ज्ञान हमें बिजली का मालिक बना दिया । आदमी अपने भीतर के संबंध जब तक अज्ञान में है तब तक अपना मालिक नह हो सकता। विज्ञान ने हमें प्रकृति का मालिक बना दिया है। धर्म हमें अपना मालि क बनाता है। लेकिन अपना मालिक कोई भी ज्ञान के बिना नहीं बनता। अज्ञान में कोई कभी मालिक नहीं बन सकता ।
और हम अपने संबंध में अज्ञान हैं। और बड़े से बड़े अज्ञान ऐसे हैं कि उन्हें हम उघा. डना भी नहीं चाहते क्योंकि डर लगता है कि कहीं हमारे भीतर का असली आदमी
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