Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

View full book text
Previous | Next

Page 131
________________ भारत की खोज नहीं रहा है। कल मिलेगा तो आज का दिन तो हम टाल रहे हैं कल के लिए। फिर कल यश मिल जाएगा । तो यश की और आगे की यात्रा कायम है। वह यश कहेगा कि क्या हुआ कुछ भी नहीं हुआ। अभी तो आगे और बड़ा सब मौजू द है। वह आगे है, वह आगे है, तो हम निरंतर जितने लोग लक्ष्य बनाते हैं, लक्ष्य हमेशा भविष्य में होते हैं और जीवन वर्तमान में होता है। इसलिए वह सिर्फ समय गुजारते हैं जी नहीं पाते। तो मेरा कहने यह है कि जीवन खुद अपना पर्याप्त साधन है। और यह जो तुम कहती हो कि स्त्री पुरुष का सहारा लेती है । वह पुरुष ने सम झाया हुआ है। एक, उसने यह समझाया हुआ है कि बेसहारा तू खड़ी नहीं हो सकती | बाप बेटी को समझाता है कि बाप के सहारे पर चलो, फिर पति समझाएगा कि ह मारे सहारे पर चलो, फिर बेटा समझाएगा कि मां तुम हमारे सहारे पर चलो। तुम अकेली खड़ी होगी तो भटक जाओगी। डराया है हजारों साल से और गुलामी की । गुलामी पैदा कर ली और स्त्री का भी म न डरा हुआ है। उसकी भी जिंदगी में कोई अर्थ नहीं है। वह भी सहारा खोजती है। कभी पति का कभी बेटे का कभी किसी का, कभी किसी का । पुरुष का भी यही है। हां, हां, पुरुष का भी यही है । पुरुष भी डरा हुआ है । मेरा तो कहना ही यही है कि डराता वही है जो डरा हुआ है। जो पुरुष डरा हुआ नहीं वह किसी स्त्री को भी न हीं डराएगा। डराएगा किस लिए वह कहेगा कि तुम आनंद से जीओ। मैं आनंद से जीऊं। और अगर हम एक क्षण में साथ हों तो हम दोनों आनंद से जीएं। मेरा मान ना यह है कि तुम जितने आनंद से जीओगी, मैं जितने आनंद से जीऊंगा, तो हमारा कोई अगर एक साथ क्षण हुआ साथ हुआ, तो वह क्षण भी आनंद का होगा, क्यों क दोनों आनंदित व्यक्ति मिले। अभी हालत क्या है अभी दो डरे हुए आदमी हैं। मैं डरा हुआ हूं तो मैं कह रहा हूं क तुम्हारा मुझे सहारा है । और तुम डरी हुई हो और तुम कह रही हो और तुम क ह रही हो कि आपका मुझे सहारा है। और हम दोनों डरे हुए आदमी हैं। यह ऐसे हो गया जैसे एक भिखमंगा दूसरे भिखमंगे के सामने हाथ फैलाए हुए खड़ा हुआ है। कि कुछ मिल जाएं। और वह दूसरा भी हाथ फैलाए हुए है कि कुछ मिल जाएं। और दोनों भिखमंगे है और देने को दोनों के पास कुछ भी नहीं है। किसी को सहारा मत बनाओ खुद सहारा बनो । मेरा मतलब जो हुआ। खड़े हो जाओ अपने पैर ों पर जिंदगी के। और तब मेरा कहना है बहुत से साथी मिलेंगे। लेकिन वह सहारे नहीं होंगे। और तब तुम उन्हें आनंद दे भी सकोगी, उनसे पा भी सकोगी। लेकिन व ह लक्ष्य नहीं होगा । वह लक्ष्य नहीं होगा तुम्हारा, वह जिंदगी में सहज इसी में रास्ते से निकला। और साहब के घर फूल खिला हुआ है और रास्ते के किनारे फूल दिख गया, मैंने उ सका आनंद लिया और आगे बढ़ गया । वह फूल ना मेरे लिए खिला था, ना मैं उस फूल के लिए निकला था। Page 131 of 150. http://www.oshoworld.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150