Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 129
________________ भारत की खोज मेरे शिक्षक थे जिस स्कूल में मैं पढ़ता था, वह मुझे पांचवीं अंग्रेजी पढ़ाते थे। और प हले ही दिन पढ़ाने आए तो मुझे लगा कि यह आदमी बहुत कावर्ड और डरा हुआ आदमी है। क्योंकि पहले ही दिन उन्होंने कहा, कि मैं किसी विद्यार्थी से डरता नहीं हूं।' अरे यह कोई बात कहने की है कि मैं विद्यार्थीयों से डरता नहीं, 'मेरी कक्षा में अगर किसी ने गड़बड़ की, तो ठीक नहीं होगा । मैं बहुत खतरनाक आदमी हूं। मैं अंधेरे रास्ते में अकेला चला जाता हूं।' तो मैंने उनको एक चिट्ठी लिखकर भेजी । उसी रोज चिट्ठी लिखी, और चिट्ठी में मैंने लिखा कि, 'आपने अपनी स्थिति जाहिर कर दी है। और लड़के आपको डराएंगे। अ और आप जब यह कहते हैं कि मैं अंधेरे में जाने से नहीं डरता तो इससे पक्का पता चलता है कि आप अंधेरे में जाने से डरते हैं नहीं तो पता ही नहीं चलना चाहिए । अंधेरा है या उजाला । जिस आदमी को जाना है, वह चला जाता है उसको पता ही नहीं चलता कि अंधेरा था । ' तो इसलिए आत्मश्रद्धा, जवरदस्त श्रद्धा यह सब बाद की बातें हैं। हमको अपने को जानना चाहिए। और जानने पर हमेशा दो बातें पता चलेंगी। यह भी पता चलेगा कि हम कितना कर सकते हैं । और यह भी पता चलेगा कि हम कितना नहीं कर सक ते। और बुद्धिमान आदमी को दोनों बातें जाननी चाहिए कि हम यह कर सकते हैं और यह हम नहीं कर सकते हैं। एक मुसलमान है। मौहम्मद के बाद अली, हां तो अली से किसी ने पूछा कि, 'हमार ताकत कितनी है ? ' तो अली ने उससे कहा कि, 'तुम अपना एक पैर ऊपर उठा लो।' उसने अपना बायां पैर ऊपर उठा लिया, फिर अली ने कहा, 'कि अब तुम दूस रा पैर भी ऊपर उठा लो ।' उसने कहा, 'यह कैसे हो सकता है, मैं एक पैर पहले उ ठा चुका। अब मैं दूसरा कैसे उठा सकता हूं?' अली ने कहा कि, 'तुमको समझ आ ना चाहिए, एक पैर उठाने की सामर्थ्य तुम्हारी है। तुम कोई भी उठा सकते हो चाहे बायां चाहे दायां। लेकिन दूसरा पैर उठाने की तुम्हारी सामर्थ्य नहीं है।' तो अली ने कहा, 'यह दोनों बातें जाननी चाहिए कि मैं कितना कर सकता हूं और कितना नहीं कर सकता हूं। जो नहीं कर सकता हूं उस झंझट में नहीं पड़ना चाहि ए, जो कर सकता हूं उससे कभी भागना नहीं चाहिए ।' पर यह ज्ञान से होगा। श्रद्धा की कोई जरूरत नहीं है। सर पुरुषों को भी एक आधार इतिहास जिसको भी आधार की जरूरत है, तो पहले का. यह सब उसके आधारभूत हैं और जो इन आधारों को पकड़ता है। वह कभी जी नह ीं पाएगा। क्योंकि झूठ को पकड़ कर कोई जी ही नहीं सकता। हां, समय गुजार लेगा । समय गुजार लेना एक बात है। एक आदमी कहता है कि, 'मैं इसीलिए जी रहा हूं कि मेरा बेटा बड़ा हो जाए। मेरी लड़की की शादी हो जाए। मेरे सब छोटे बच्चे सुखी हो जाएं। और बड़े मजे की बात है।' इसका बेटा बड़ा होकर क्या करेगा? वह यह करेगा कि उसका बेटा बड़ा हो जाए। और उसका बेटा बड़ा होकर क्या करेगा Page 129 of 150. http://www.oshoworld.com

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