Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 144
________________ भारत की खोज अगर मेरे सुनने वालों ने मुझे अंधे की तरह माना है, तो वह दिक्कत में पड़ जाएंगे ? और अंधे हमेशा दिक्कत में पड़ते हैं इसमें मेरा क्या कसूर है? जी, हां और अगर मेरे सुनने वालों ने और मैं तो पूरी कोशिश यह कर रहा हूं कि अंधेपन की दुश्मनी की कोशिश कर रहा हूं और अगर मेरे सुनने वालों ने ठीक सुना है तो वह मुझे गलत कहेंगे कि यह आदमी गलत हो गया। इससे क्या फर्क पड़ता है? यानि यह अगर मैंने कहा इसलिए आपने मान लिया तो मुश्किल में पड़ने वाले हैं क्योंकि कल में बदल सकता हूं। लेकिन मैंने जो कहा आपने सोचा, और इसलिए माना कि आपकी बुद्धि को जंचा तो कल जो मैं कहूंगा वह भी आप सोच लेना जंचे तो ठीक है नहीं वात खत्म। बंधने का सवाल ही नहीं है। और इसलिए मेरा कहना है मुझसे बंधने का कोई सवाल ही नहीं है। कोई मुझसे बंध ही नहीं है। कोई प्रश्न नहीं है मुझे जो ठीक लगेगा वह मैं कहंगा। आपको ठीक ल गेगा आप मानेंगे नहीं लगेगा आप नहीं मानेंगे। और मेरा कहना ही यह है कि आप मानना ही मत। और मेरा कहना ही यह है कि आप मानना ही मत, अंधे की तरह । गांधी जी ने इस पर बहुत जोर दिया अंधे की तरह मानने का। गांधी जी ने अपनी सारी बातें, बिना दलील के इस मुल्क को मनवाने की कोशिश की, बिना दलील के सत्याग्रह करना कोई दलील नहीं है। और यह कहना कि मेरी अंतरात्मा कहती है। इसलिए मैं ऐसे ही करूंगा। यह भी कोई दलील नहीं है। कल मैं यह डायरी देख रहा था, गांधी . . . . .से निकाली। तो उसमें लिखा है कि, 'जब किसी चीज का निर्णय ना हो पाए तो अंतिम निर्णय अंतरात्मा का है। वही स त्य है तुम्हारे लिए होगा। लेकिन तुम कहते हो कि पूरे मुल्क के लिए सत्य है। अंबे डकर की अंतरात्मा कुछ और कहती है जिन्ना की अंतरात्मा कुछ और कहती है, तु म्हारी अंतरात्मा कुछ और कहती है। हम किसको सत्य मानें। हमारी अंतरात्मा को मानेंगे ना, तुम्हारी तो नहीं। वाचक-बेसीकली रांग है। बेसीकली रांग है। अंतरात्मा की आवाज आपके लिए सत्य है, लेकिन आप दूसरे पर नहीं थोप सकते। और यह बड़ी थोपने की तरकीब है। मैं कहूं कि अगर आप नहीं मानोगे, तो मैं भूखा मर जाऊंगा। तो एक अच्छे आदमी को सोचकर कि यह आदमी भूखा ना मर जाए पता नहीं यही ठीक हो आप जल्दी-जल्दी चलो। और सव तरफ से आप पर प्रैशर पड़ना शुरू होगा। पूरा पूना कहेगा कि एक आदमी मर रहा है अ प क्या. . . वाचक-अगर ठीक से गांधी को समझ आ जाता क्या कहना है? तो फिर गोमसे को गोमसे तो गलत है ही, ना, ना, ना गोमसे तो गलत है ही। गांधी गलत है इसलिए गांधी को मारना थोड़े ही सही है। यह तो सवाल ही नहीं है। . . . नहीं आप मेरी बात नहीं समझे Page 144 of 150 http://www.oshoworld.com

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