Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 134
________________ भारत की खोज हाथ में ताकत हो, वह सारी खूबसूरत स्त्रियों को घेरकर खड़ा हो जाता था। क ही थी और तो कोई नियम नहीं था। ताकत ही नियम है। अभी भी निजाम हैदराब ाद पांच सौ, अभी भी । कृष्ण की कोई सोलह हजार औरतें । वाचक - लेकिन यह केवल तीन थी । मेरा मतलब नहीं समझी, पुरुष के हाथ में ताकत है इसलिए ताकत वाला कुछ करे गा। ऐसे समाज भी रहे हैं जहां स्त्रियों के हाथ में ताकत रही तो उन्होंने जवान खूब सूरत लड़कों को बाध कर रख लिया । ताकत, ताकत जहां होगी. . . तो ताकत ही थी उन दिनों । तो उसका परिणाम यह हुआ था कि एक आदमी सारी सुंदर स्त्रियों को पकड़ ले या एक स्त्री सारे सुंदर जवानों को पकड़ ले। सारे लोग.. . इस स्थिति को बदलने के लिए इंतजाम करना पड़ा। वह इंतजाम कि या। कोई संबंध हो, कुछ नियम हो, समाज की कोई व्यवस्था हो। वह व्यवस्था हो ग ई। अब उस व्यवस्था में हमें पता चला कि दूसरी बीमारियां हैं। अब हम उस व्यवस्थ को भी बदलना चाहेंगे। इसका मतलब यह नहीं है कि हम पीछे लौट जाएंगे, पचा स हजार साल पहले वहां तो हम कभी नहीं लौट सकते। अब तो जो हम व्यवस्था दें गे वह इससे बेहतर होगी। यह व्यवस्था उससे बेहतर थी । पूर्वज हमेशा अपने पूर्वजों से ज्यादा समझदार थे लेकिन अपने आने वाले बेटों से ज्या दा समझदार नहीं हो सकते जिन्होंने व्यवस्था दी विवाह की वह उन पूर्वजों से ज्यादा समझदार थे जो समाज में लाठी का बल चलाते थे। लेकिन अब फिर वक्त आ गय है कि फिर इसको बदलो यह भी सड़ गया है । और अब दुनिया ऐसी हालत में आ गई है कि यह बात समझी जा सकती है। मित्रता की बात यहां पर समझी नहीं ज ा सकती और अब दुनिया ऐसी हालत में आ गई है कि स्त्री इंडवीज्वल की हैसियत से खड़ी हो सकती है, अब तक खड़ी ही नहीं हो सकती थी । यानि पहले ही और मजा यह है कि यह सारा का सारा जो विकास हुआ है इ स सारे विकास में अब एक स्थिति ऐसी आ गई है, जैसे हुआ क्या है ? पुरुष के हाथ में ताकत थी जो स्त्री के हाथ में नहीं थी । शरीर के लिहाज से वह थोड़ी कमजोर है, स्वभावतः तो पुरुष उसको दबाता रहा। लेकिन अब अब हमने एक ऐसी समाज वकसित कर ली जिसमें ताकतवर कमजोर को दबाए इसकी जरूरत नहीं रह गई अ और दबाए तो हम इंतजाम कर सकते हैं कि वह ना दबा सके। अब यह संभव हुआ यह आज से पहले संभव नहीं था। फिर हमने यह व्यवस्था कर ली कि पुरुष के हाथ में अर्थ की सारी ताकत थी । कमाता वह था, और सूछता ही नहीं था कि स्त्री कैसे कमाए? क्योंकि कुछ काम ऐसे थे कि वह स्त्री कर ही नहीं पाती थी । जैसे शिकार का काम था, हजारों साल तक आदमी शिकार पर जीता था। तो वह स्त्री की जूल जी नहीं थी कि वह शिकार कर सके। ऐसे मसल्स नहीं थे, जो जाकर जंगली जानव रों से जूझ सके। तो वह पिछड़ गई, शिकार वह कर सकता था वह मालिक ज्यादा बड़ा होगा वह भोजन लाता था, भोजन जुटाता था । Page 134 of 150 http://www.oshoworld.com

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