Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 140
________________ भारत की खोज । जो पहले क्यू में आया वह पहले खड़ा होगा, और हटता है तो वह अपमानजनक है। हम पीछे आए हैं तो हम पीछे खड़े होंगे। मगर मजा क्या है? इस वक्त शिक्षित से शिक्षित स्त्री कहती है, मैं पुरुष के बराबर हूं। लेकिन पुरुष जो सुविधाएं देता है वह बड़े मजे से लिए चली जाती हैं। यह डकट्री है यह कभी हो नहीं पाएगा । सुविधाओं को इंकार करो। अभी मैं अहमदाबाद में था । तो अहमदाबाद के हरिजन, एक पूरा मंडल बना कर आ ए, पच्चीस-तीस हरिजन आए । पहले उन्होंने मुझे चिट्ठी लिखी, और मुझे लिखा कि, ‘जैसे गांधी जी हरिजनों की कालोनी में ठहरते थे आप क्यों नहीं ठहरते। हम आप से मिलना चाहते हैं।' वह मिलने आए। उन्होंने मुझसे कहा कि, 'आप हरिजनों की कालोनी में क्यों नहीं ठहरते ? आप हरिजन के घर में क्यों नहीं ठहरते, जैसे गांधी जी ठहरते थे । ' तो मैंने कहा कि, 'पहली तो बात यह कि मैं किसी को हरिजन नहीं मानता, गांधी किसी को हरिजन मानते होंगे। मैं किसी को हरिजन नहीं मानता। मैं घर में ठहरता हूं। हरिजन और गैर हरिजन का सवाल ही नहीं । तुम आओ मुझसे कहो कि हमारे घर में ठहरने की व्यवस्था है। मैं चलूंगा, लेकिन तुम कहो कि हरिजन के घर में ठह रने चलो तो मैं नहीं चलूंगा।' क्योंकि हरिजन को मानना, हरिजन को जारी रखना, उसको जारी रखना उसका नीचा, यह भी नीचा दिखाना है । यानि महात्मा गांधी हरिजन के घर में ठहरते हैं यह बड़ा भारी उपकार कर रहे हैं वह। और हरिजन बड़ा प्रसन्न है और बेवकूफ उसको अति प्रसन्नता में, क्योंकि यह उसकी हीनता का सबूत है और वह कहता फिर रहा है कि महात्मा जी हमारे घर में ठहरे हुए हैं। तुम आदमी हो कि जानवर हो, तुम क्या हो जो तुम्हारे घर में ठहर ने से महात्मा जी ने तुम्हारे घर में ठहरने से बहुत बड़ा काम किया हुआ है । एक जमाना था कि उसको रिकग्रिशन दिया जा रहा था कि हरिजन के घर में हम नहीं ठहरेंगे वह भी विशेष व्यवहार था। अब वह गांधी जी कहते हैं कि हम हरिजन के घर में ही ठहरेंगे। यह भी विशेष व्यवहार है । और विशेष व्यवहार हमेशा कमज रों के साथ होता है। तो मैंने कहा, 'मैं तो हरिजन किसी को मान.. हां और मैं ने उनसे, वह बोले कि हरिजन कैसे मिटे ?' तो मैंने उनसे कहा कि, 'पहली तो बात यह है कि तुम मिटना नहीं चाहते । तुमसे कहता कौन है कि तुम अपने को हरिजन कहो तुम क्यों अपने को हरिजन कहने ए हो? यहां पर तीस आदमी मिलकर ।' और हरिजन होने से तुमको जो विशेष सुवि धाएं मिल रही हैं वह तुम इंकार नहीं करते। उसका तुम पूरा फायदा ले रहे हो । . बहुत जरूरत है। एक दम जरूरत है क्यों? एक तो मैं पूरे का विरोध करता हूं। ऐस कोई कभी भूल से भी ना सोचे कि गांधी की कुछ बातों का विरोध करता हूं कुछ का नहीं करता। क्योंकि मेरा मानना है या तो आदमी गलत होता है या आदमी ठी क होता हैं। कुछ गलत कुछ ठीक ऐसा आदमी होता ही नहीं, हो नहीं सकता। क्योिं Page 140 of 150 http://www.oshoworld.com

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