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भारत की खोज
रह खड़े हुए हैं, राहगीर जैसे दूसरे को देख रहा हो कि क्या हो रहा है। ऐसे भारत की प्रतिभा नहीं जन्म सकती। इन तीन दिनों में थोड़ी सी बातें मैंने कहीं मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सु ना उससे बहुत अनुग्रहित हूं और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम कर ता हूं। मेरा प्रणाम स्वीकार करें।
ओशो नए भारत की खोज टाक्स गिवन इन पूना, इंडिया डिस्कोर्स नं ७
मेरे प्रिय आत्मन्, इसमें कोई श्रद्धा-विश्वास की जरूरत नहीं है। में पांच मील चल सकता हूं। मैं यह कहूं कि मैं एक घंटे में पांच मील चल सकता हूं इसमें कोई श्रद्धा विश्वास की जरूर त नहीं है, में पांच मील चल सकता हूं। मुझे अपनी शक्तियों का ध्यान होना चाहिए
और मैं विश्वास करूंगा, पच्चीस मील चल सकता हूं तो मरूंगा, झंझट में पडूंगा। जबरदस्ती कर लिया तो झंझट में पड़े, क्योंकि वह सीमा के बाहर हो जाएगा। और कम किया तो भी नुकसान में पड़ जाएंगे। क्योंकि वह सीमा से नीचे हो जाएगा। इस लिए मैं कहता हूं कि आत्मज्ञान होना चाहिए। हमें अपनी सारी शक्तियों का हम क्य [ कर सकते हैं क्या नहीं कर सकते हैं? उन सव हमें पता होना चाहिए। और उस पता होने पर, उस ज्ञान के होने पर, हम उसके अनुसार जीते हैं। आत्मज्ञा न होना चाहिए। और आत्मज्ञान अपने आप श्रद्धा बन जाता है। जो आदमी जानता है मैं पांच मील चल सकता हूं। वह पांच मील चलने के लिए हमेशा तैयार है। उसे कोई भय नहीं है। लेकिन होता क्या है? होता क्या है? हम गलत चीजों में श्रद्धाएं कर लेते हैं। जैसे एक आदमी श्रद्धा कर ले कि मैं मर नहीं सकता हूं। वह विलकुल पागलपन की बातें कर रहा है। कितनी जबरदस्त करो इससे क्या होने वाला है? f कतनी ही जबरदस्त करो। आत्मज्ञान होना चाहिए। और उससे आत्मश्रद्धा अपने आ पवन जाती है उससे कुछ बनाने की जरूरत ही नहीं है। पर उसको श्रद्धा कहने की
भी कोई जरूरत नहीं है। और जो लोग कहते हैं जबरदस्त श्रद्धा करनी चाहिए। वह कमजोर लोग होते हैं हमे शा। वह कमजोरी को पूरा कर रहे हैं श्रद्धा करके। कभी भी सचमुच अपने को जान ने वाला आदमी ना श्रद्धा करता है ना अश्रद्धा करता है। वह जानता है उसके अनुस र जीता है। लेकिन एक डरपोक आदमी डरा हुआ आदमी वह कहता है मैं बिलकुल नहीं डरता, मुझे अपने में बड़ी श्रद्धा है लेकिन वह डरा हुआ है इसलिए यह बातें कह रहा है। जो डरा हुआ है वह यह कहता है कि मेरी जबरदस्त श्रद्धा है।
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