Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 126
________________ भारत की खोज र दस पीढ़ी पहले जिन पलंग उनके घर में कोई सोता होगा उनकी निवाड उनके टूटे हुए अंग भी रखे हुए हैं। वह घर एक ऐतिहासिक नमूना है। उस घर में जिंदा आदमी का रहना मुश्किल, क्यों मरे हुओं के इतने सामान वहां इकट्ठे हैं। मैंने उनसे पूछा, 'यह काहे के लिए इकट्ठे किए हुए हो। इनको फैंको ।' वह कहने लगे, 'पता नहीं कब कौन-सी चीज काम पड़ जाए।' यही भारत का दिमाग है । कुछ फैंको मत सब बचा कर रखो। पता नहीं क व किस चीज की जरूरत पड़ जाए। जरूरत किसी चीज की नहीं पड़ेगी सिर्फ अर्थी की पड़ेगी। और उसमें हमारी अर्थी निकलेगी, और यह सब सामान यहीं रखा रहेगा । हमारी अर्थी निकल जाएगी। अगर विध्वंस की तैयारी नहीं है तो विध्वंस होगा। उसमें हम मरेंगे सामान बच जाए गा, इतिहास की किताबें बच जाएगी गीता, रामायण सब बच जाएंगे। आदमी मर जाएगा। अब दो में से एक निर्णय करना है या तो आदमी को बचाना हो, तो यह सामान को आग लगाओ, फैंको, अलग करो इसे । और जगह बनाओ, स्पेस की कमी पड़ गई है। चित्त में जगह नहीं रही है। इतना कवाड़ इकट्ठा है । उसमें जगह बनाअ ताकि इस जगह में नया आ सके नया अंकुर आ सके। तो मैं कोई विध्वंस से मुझे कोई रस नहीं है, कोई मुझे मजा नहीं आता कि चीजें टूट जाएं तो मुझे बहुत मजा आएगा । विध्वंस के लिए जो कहता हूं उसका कुल कारण इतना है कि वह मार्ग साफ करेगा । जैसे कोई आदमी ने जमीन पर बगीचा लगाया। तो पहले घास - वास को उखाड़ कर फैंक देता है, जमीन को खोद कर जड़ें निकाल कर फैंक देता है आप खड़े हैं दरवा जे के बाहर और कह रहे हैं कि, 'क्या यह विध्वंस कर रहे हो। अरे बीज बो निर्मा ण करो, घास है तो रहने दो, जड़ें पुरानी है तो रहने दो, तुम तो बीज बो निर्माण करो। हम निर्माण को मानते हैं हम घास को उखाड़ेंगे ही नहीं, हम जड़ों को उखाड़ें गे।' वह आदमी कहेगा, 'फिर, फिर बीज खो जाएंगे घास में फूल पैदा नहीं होंगे। घ [स-पात इतना इकट्ठा हो गया है कि उसे साफ करना जरूरी है। देश के चित्त की भू मि साफ करनी जरूरी है। कोई चीजें तोड़ने का उसका सवाल नहीं है जो मैं कह रहा हूं। जो मैं कह रहा हूं व ह माइंड है हमारा। वह जो जराजीर्ण हो गया चित्त है उसे तोड़ने और बदलने का सवाल है ताकि वह नया हो सके और वह नया हो सके तो भारत की प्रतिभा का जन्म हो सकता है। और मैं आपसे अंत में यह कहना चाहता हूं। अगर भारत यह हिम्मत कर ले और नए चित्त का स्वागत करने को तैयार हो जाए तो शायद भारत में इतनी प्रतिभा प्र कट हो जितनी दुनिया का कोई देश प्रकट नहीं कर पा रहा है। उसका कारण है। जै से कोई खेत बहुत दिन तक बंजर पड़ा रहा, उस पर कोई खेतीबाड़ी ना हो, और प. डोंस के खेतों पर खेती बाड़ी होती रहे तो जिन खेतों में खेतीबाड़ी होती रही है। व ह अवशोषित हो जाते हैं। उनका सारा का सारा जो भी सार्थक है वह वृक्ष पी जाते Page 126 of 150. http://www.oshoworld.com

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