Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 124
________________ भारत की खोज खड़खड़ाते थे। सब नकली थे। एक टांग लकड़ी की थी एक हाथ पाईप की। उसने क हा, 'मेरे भगवान इससे शादी की है तुमने! इस मरी हुई स्त्री से तुमने शादी की है। उस आदमी ने खिलखिलाकर हंसकर कहा. 'घबराओ मत! जोर से बोलो शी इज डै फ टू, वह बहरी भी है। तुम घबराओ मत। यह आदमी बड़ा रचनात्मक दृष्टि का रहा होगा। यह जो दूल्हन लाए हैं वड़ी कंसट्रक्टिव है। इस मुल्क में इसे कंसट्रक्शन करने वाले बहुत लोग हैं वह कहते हैं। पुराने की टांग ठीक ठाक करके, फिर लीप पोत कर खड़ा कर दो। लेकिन नए को सृजन की हिम्मत नहीं होती है। नए का सृज न करना हो तो पूराने का विध्वंस करना जरूरी है। पूराने को जाने दें, नया आ सके जगह खाली हो। हिरोशिमा पर नागासाकी पर एटमबम गिरा तो लोग सोचते थे कि हिरोशिमा और नागासाकी कभी भी पनप नहीं सकेंगे, सब वंजर हो गया। सब जमीन से मिल गए मकान। सब दरखत सूख गए। सब बदल गया सब खत्म हो गया, विरान हो गया, लेकिन जाओ. . . अभी मेरे मित्र लौटे जापान से वह कहने लगे मैं दंग रह गया हि रोशिमा देखो बिलकुल नया हो गया। और हिरोशिमा के लोग कहते हैं कि बड़ी कृपा रही कि एटम हम पर ही गिरा दूसरे नगर पर नहीं गिरा। सव पुराना खत्म हो गय । पुराने झोंपड़े, मकान, पुराना सब खत्म हो गया एक दम सब नया बन सका। वहां जर्मनी में इतना विद्धवंश हुआ युद्ध से गुजरे पहले महायुद्ध से गुजरे लोग सोच ते थे कि अव सौ वर्ष लग जाएंगे जर्मनी को लड़ने के लिए तैयार होने में। वह पंद्रह साल में फिर तैयार हो गया। फिर दूसरे महायुद्ध में कितना भयंकर विध्वंस हुआ दू निया की सारी ताकतें लगकर जर्मनी को रोंद डाली। आज जाकर जर्मनी को देखें, फर नया हो गया। और हिंदुस्तान में पता है युद्ध कव से नहीं हुआ महाभारत के वा द नहीं हुआ। पांच हजार साल कम से कम, और महाभारत का भी हुआ कि नहीं, कहना बहुत शक है। उससे जो विध्वंस हो गया है महाभारत के युद्ध से वह अभी त क पूरा नहीं हो पाया है। अभी भी जाएं पूना में और खोजें गली कूचे में वह मकान मिल जाएगा जो महाभारत के जमाने में बना होगा। जिसमें कौरव पांडव ठहरे होंगे। जरूर मिल जाएगी वह जगह। जहां रामचंद्र जी निकले होंगे, और जहां सीता जी ठ हरी होंगी जिस झाड़ के नीचे वह जरूर पूना में होगा। सब जगह हैं वह । वह मिटते ही नहीं। कोई विध्वंस नहीं हुआ है इस मुल्क में तो भी यह सड़ा हुआ जी रहा है। और बहुत इकट्ठा हो गया है कचरा। मैं यह नहीं कहता हूं कि युद्ध हो जाए, मैं यह कहता हूं कि हमें खुद ही हिम्मत जुटानी चाहिए, पुराने को जाने दें। और पुराने को जाने देंगे , तो नए को वनाना ही पड़ेगा। चूंकि बिना बनाए हम नहीं रह सकते। एक बार पुर ने को जाने देने का साहस जव इकट्ठा कर लेती है कौम तो नए को बनाने में लग जाती है। आपको शायद अंदाज ना हो, इस समय पृथ्वी पर जिन दो मुल्कों ने अदभु त प्रगति हुई है जैसी कभी नहीं हुई थी। उन दोनों मुल्कों की प्रगति का कारण आप Page 124 of 150 http://www.oshoworld.com

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