Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 122
________________ भारत की खोज है | तू हिंदू है | तू हिंदू है, वह बेचारा चिल्ला रहा है कि, 'मैं हिंदू हूं।' फलां ने चि ल्लाया कि मैं मुसलमान हूं। वह चिल्ला रहा है कि मैं मुसलमान हूं। वह चिल्ला रहा है कि मैं मुसलमान हूं । यह दो शब्द सिखा दिए हैं । और यह दो शब्द एक दूसरे की छाती में छुरा भौंक देंगे । कैसा पागलपन है। दो शब्दों कि शिक्षा कि मैं हिंदू हूं और एक आदमी मुसलमान है। और छुरे चल जाएंगे और एक दूसरे की छाती में घुस जाएंगे । और धर्मगुरु कहेग , 'घबराओ मत ! धर्म के जेहाद में जो मरता है वह स्वर्ग जाता है।' धर्म का जेहाद हो सकता है। धर्म के जेहाद में जो जो मरेंगे अगर कहीं अगर कहीं नर्क है तो उस नर्क से कभी नहीं छूट सकते। क्योंकि धर्म का जेहाद नहीं हो सकता धर्म का, क्या हीनता हो सकती धर्म से । धर्म से युद्ध हो सकता है, तो फिर अधर्म से क्या होगा ? राजनीतिज्ञ और धर्मगुरु ने पीड़ित किया है जगत को । इसलिए मैंने इन तीन दिनों में कहा कि, 'हमारे प्राकृतिक साईंस की इनस्टीटयूट सोचने का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होना जरूरी है। एक दो छोटे प्रश्न और फिर मैं अपनी बात पूरी करूं । एक मित्र ने पूछा है कि, 'आप डिस्ट्रक्शन पर विद्धवंश पर बहुत जोर देते हैं। कन्सट्र क्शनस पर इतना जोर क्यों नहीं देते, निर्माण पर इतना जोर क्यों नहीं देते ?' पहली तो बात यह, एक आदमी बीमार पड़ा हो, पैर सड़ गया हो। और वह सर्जन के पास जाए और वह सर्जन कहे पैर काटना पड़ेगा, वह आदमी कहे कि विध्वंस की क्यों बातें करते हैं? निर्माण की बातें कहिए, कन्सट्रकशन की बातें कहिए। तो वह सर्जन कहेगा तो जाईए, लेकिन कल तक जब तक आएंगे तक यह दोनों पैर काटना पड़ेगा। और अगर परसौ तक आए तो फिर बचना मुश्किल है। समाज सड़ गया है, सब अंग सड़ गए हैं। और आप कह रहे हैं कि रचनात्मक। वह जितने लोग रचनात् मक कार्यक्रम चला रहे हैं। वह सब इसी सड़े-गले समाज को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। खेगड़े लगा रहे हैं इसी समाज को, महान गिरने के करीब है सब दबकर म र जाएंगे उसमें वह उसी में बल्लियां लगा रहे है। पलस्तर बदल रहे हैं। बोर्ड पेंट क र रहे हैं दरवाजों पर नया रंग रोगन कर रहे हैं। कन्सट्रक्टिव वर्क कर रहे हैं रचना त्मक कार्यक्रम कर रहे है, सर्वोदय का आंदोलन चला रहे हैं। उसी समाज में जो सड़ गया है, उस सड़े समाज में जो भी रचना का काम कर रहा है वह सड़े समाज को बचाने की कोशिश कर रहा है। उसको जिलाए रखने की को शिश कर रहा है। वह मरे मरे आदमी को आक्सीजन दिला रहे हैं कि वह किसी तर ह बच जाए। क्यूं ! इतना बचाने का मूल क्या है ? जो मर गया है उसे मर जाने दो। नया सदा जिंदा होने को है, नया सदा पैदा होता है। पुराने पत्ते गिरते हैं पतझड़कर । वृक्ष चिल्लाकर नहीं कहते कि, 'हे परमात्मा, यह क्या विध्वंस कर रहे हो ? सब पुराने पत्ते गिराए रहे हो हम बिलकुल नंगे हो जाएंगे। नहीं वृक्ष नहीं कहते वृक्षों की अपनी विजिडम है अपना ज्ञान है। वह जानते हैं कि जो पुराने पत्ते गिरे उन्हीं ज गह फिर नए पत्ते निकल आएगें। Page 122 of 150. http://www.oshoworld.com

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