Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 123
________________ भारत की खोज पुराने का विध्वंस होना जरूरी है, ताकि नए का जन्म हो। और ध्यान रहे विध्वंस सृ जन की प्रक्रिया का पहला चरण है। विध्वंस विध्वंस ही नहीं है। विध्वंस के बिना सृज न ही नहीं होता। विध्वंस बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है। तो मैं यह नहीं कह रहा हं कि तोड डालो. क्योंकि तोडने में वहत मजा आता है. यह मैं नहीं कह रहा है। मैं यह कह रहा हूं, तोड़ो ताकि बनाया जा सके। लेकिन बनाने से पहले इस सड़ेगले को तोड़ना जरूरी हो गया है। इससे क्यों जोर दे रहा हूं? इससे जोर इसलिए दे रहा हूं कि इसे हम तोड़ने को राजी हो जाएं तो फिर बनाने का भी विचार किया जाए। किन आप कहते हैं कि तोड़ने की बात मत कहिए। बनाने के संबंध में कुछ समझा इए। और आपको बनाने के संबंध में समझाया जाए तो आप इस सड़े-गले समाज में बनाने की कोशिश करेंगे। और अव यह समाज आमूल जड़ से सड़ गया है। इसे उखाड़ना जरूरी है। लेकिन हमें विध्वंस से बड़ा डर लगता है। जिसने पूछा है उसने बड़े धैर्य से पूछा लगता है। उन होंने पूछा है कि, 'विध्वंस ही विध्वंस, तोड़ो ही तोड़ो बहुत डर लगता है। इतना डर क्या है तोड़ने से। क्या वनाने की ताकत विलकन नहीं बची है कि तोड़ना ही इतना डर पैदा होता ।' बनाने की ताकत को तोड़ने से कोई डर नहीं है। यह बात जरूर है कि तोड़ने के लिए, तोड़ने का कोई मतलब नहीं। मैंने नहीं कहता कि तोड़ने के लिए तोड़ो। डिस्ट्रकसन फौर डिस्ट्रकसन सेक। यह मैं नहीं कह रहा। मैं यह कह रह । हूं कि डिस्ट्रकसन फोर दा क्रिएशन सेक। विध्वंस सृजन के लिए है। और निर्माण की बात मैं नहीं कर रहा हूं। मैं वात कर रहा हूं सृजन की। कन्सट्रक्श न और क्रिएशन में फर्क खयाल है आपको, सृजन में और निर्माण में क्या फर्क है। ि नर्माण पूराने का ही लीप-पोत कर बनाया हुआ डोंग ढडूरा होता है। सृजन नए का जन्म है। निर्माण ऐसे है जैसे एक बूढ़े आदमी की एक टांग टूट गई तो लकड़ी की ट ग लगा ली। एक आंख फूट गई तो पत्थर की आंख लगा ली। एक हाथ उखड़ गया एक नकली हाथ लगा लिया। दांत निकल गए तो नकली दांत . . . यह निर्माण, यह रचनात्मक कार्यक्रम है। सृजनात्मक का मतलब है कि वह हाथ विदा होने की त रफ आ गया। तो उसे प्रेम से विदा कर दो। दुनिया में नए बच्चों के लिए जगह बना ओ आने दो, नया वच्चा भगवान देने को तैयार है। सृजन का मतलब है नया। और निर्माण का मतलब है वही पुराना। लेकिन कुछ लोग होते हैं। मैंने सुना है एक आदमी ने शादी की। बड़ी उम्र में शादी की चालीस साल का हो ग या तव शादी की। बहुत दिन तक लोगों ने देखा कि अब शादी का निमंत्रण मिलेगा, अब मिलेगा, मिला ही नहीं। फिर लोग भूल ही गए कि अब शायद नहीं मिलेगा। चालीस साल में निमंत्रण मिला। लोग बड़े चौंके। एक मित्र नहीं जा पाया शादी में महीने भर वाद एक होटल से दूल्हा और दूल्हन वाहर निकलते थे। वह मित्र नहीं ज | पाया था, उसने क्षमा मांगने के लिए रूका लेकिन दूल्हन को देखकर वह बहुत हैर न हो गया। सव वाल नकली थे, आंख एक पत्थर की थी। जरासा मसल देते दांत Page 123 of 150 http://www.oshoworld.com

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