Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 119
________________ भारत की खोज थ-साथ बिठा दिया। अगर आदमी पैदल चलता रहता बैलगाड़ी में चलता रहता तो शूद्र और ब्रह्मण कभी पास नहीं बैठ सकते थे। युरिगागरिन जव पहली दफा अंतरिक्ष में गया। तो वहां से जो उसने मैंसिज भेजी, इ सका पता है उसने क्या कहा, उसने कहा, 'यहां आकर पहली दफा मुझे लग रहा है माई अर्थ। मेरी पृथ्वी। यहां आकर मुझे ऐसा नहीं लगता मेरा रूस, वहां रूस दिखत । ही नहीं, अंतरिक्ष में दिखता है पृथ्वी। वहां ना कोई रूस है, ना कोई चीन है, ना कोई भारत।' उसने यह नहीं कहा, 'माई रसिया। युरिगागरिन ने कहा कि कहां है रूस यहां से तो सिर्फ पृथ्वी ही दिखाई पड़ती है मेरी पृथ्वी। अगर चांद की यात्रा शुरू हो गई और चांद पर आप गए समझ लें मंगल पर गए। और मंगल पर निवास करने वाले लोग हुए और उन्होंने पूछा, 'कहां से आते हैं, तो आपको कहना पड़ेगा पृथ्वी से।' यह नहीं कि महाराष्ट्र से आ रहे हैं। वह मंगल का आदमी महाराष्ट्र का कोई मतलब नहीं समझ पाएगा। अगर हम चांद पर पहुंचा दि या विज्ञान ने तो पृथ्वी एक हो जाएगी। धारणा बदल जाएगी, दृष्टि बदल जाएगी, ि वज्ञान ने इतने जोर का कोम्यूनीकेशन के साधन पैदा किए कि आज एक हिंदु लडका अमरीका में जाकर शादी कर सकता है। अमरीकी लड़की भारत आकर शादी कर सकती है। कितना सुंदर और सुखद अगर सारी दुनिया के बच्चे दूर-दूर शादी कर लेंगे तो दुनि या में युद्ध होना बहुत मुश्किल हो जाएगा। अगर युद्ध जारी रखना है तो अपनी ही जाति में शादी करना। अगर युद्ध मिटाना है तो अपनी जाति में कभी भूलकर शादी मत करना। क्योंकि जितने हमारे संबंध दूसरी जातियों में फैल जाते हैं उतने दूसरी जातियों से हमारा खून जुड़ जाता है। हम एक हो जाते हैं। दुनिया के पुराने वैद्यों ने सिखाया कि अपनी जाति के वाहर मत जाना। यह लड़ाई का अड्डा है। अगर हिंदू स्तान में एक दूसरी जाति में विवाह होता, होता तो संतों-वतों को समझाने की कोई जरूरत नहीं थी। सब एक अपने आप ही होते। हिंदुस्तान जितना टूटा हुआ है उसक [ कारण यह है कि सब अपने अपने घेरे में विवाह कर रहे हैं। घेरे के बाहर कोई सं बंध ही पैदा नहीं हो पाता। घेरे के बाहर प्रेम के बढ़ने का कोई उपाय नहीं है। विज्ञा न ने सब सीमाएं तोड़ दी हैं। आने वाले पचास वर्षों में वही बची कुची सीमाएं भी टूट जाएंगी और दुनिया एक हो सकती है। लेकिन राजनीतिज्ञ बाधा डाल रहा है। राजनीतिज्ञ जैसे पहले के धार्मिक लोगों ने बा धा डाली थी, विज्ञान को नहीं बढ़ने दिया था। क्योंकि धर्म के लोगों को डर लगा थ [ कि अगर विज्ञान बढ़ेगा तो धर्म की जो गोप कल्पनाएं, गोप लीलाएं, मूलता पूर्ण कथाएं है वह सब मिट्टी हो जाएंगी। वह सब मिट्टी हो गई हैं। तो धार्मिक गुरु डरा कि उसने कहा कि विज्ञान नहीं बढ़ना चाहिए। क्योंकि हमने जो जाल फैला रखा है वह सब टूट जाएगा। लेकिन सत्य को ज्यादा देर तक नहीं रोका जा सकता। सत्य विज्ञान के पक्ष में था। धर्मों को हार जाना पड़ा, विज्ञान जीता। Page 119 of 150 http://www.oshoworld.com

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