Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 118
________________ भारत की खोज दुश्मन चारों तरफ इकट्ठे हैं। दुश्मन इकट्ठे हैं। दुश्मन कौन बना रहा है? और वह जो दुश्मन इकट्ठे हैं हिंदुस्तान का नेता कह रहा है कि इकट्ठे रहो। क्योंकि पाकिस्तान का डर है। पाकिस्तान का नेता पाकिस्तान की गरीब जनता को कह रहा है इकटे रहो. क्योंकि पाकिस्तान का डर है। लेकिन डर किसका है? जव दोनों डरे हुए हो, छोड़ दो डर, म। लेकिन राजनीतिज्ञ मर जाएगा तो डर छोड दोगे। तो कौन मानेगा नेता. दनि या को भयभीत रखना जरूरी है बांट कर, खंड-खंड करना जरूरी है। जब तक दुनि या बटी है तब तक राजनीतिज्ञ मालिक रहेगा। दुनिया को राजनीतिज्ञ लड़ा रहा है। राजनीति लड़ा रही है। राजनीति नए तरह के धर्म पैदा कर रही है। उसे पुराने धर्म के नाम थे हिंदू, मुसलमान, ईसाई, जैन यह पुराने धर्मों के नाम हैं। सच में पूछिए तो यह पुरानी पोलिटिक्स के नाम हैं, पुरानी राजनीति के। नई राजनी ति के नाम हैं कम्यूनिज्म, शोशीयलिज्म, कैप्टललिज्म, डैमोक्रेशी, यह नए धर्म हैं नई राजनीति है। इनके भी मक्का मदीना हैं। इनके भी पौप जगतगुरु हैं। वह कम्यूनिष्ट क्रमलिन की तरफ उसी तरह देखता है जैसे हिंदू काशी की तरफ देखता है। मुसल मान मक्का की तरफ देखता है। क्रमलिन पर चमकता हुआ रैड स्टार वही मतलव र खता है जो काशी में विश्वनाथ के मंदिर के ऊपर का झंडा लगता है। दिमाग वही नए ढंग से आदमी को फिर बांट दिया गया है। विज्ञान ने तो मौका पैदा किया है ि क आदमी को बांटने की कोई जरूरत नहीं होगी, विज्ञान ने वह खोजें की हैं, और ि वज्ञान कहता है कि अगर एक शूद्र की और एक ब्राह्मण की हड्डी निकाली जाएं तो दोनों में कोई फर्क नहीं है। और बड़े से बड़ा खोज करने वाला वेद का ज्ञाता भी नह बता सकता कि यह हड्डी ब्राह्मण की है और यह शूद्र की, कि बता सकता है? क ोई रास्ता नहीं है। हड्डियां एक सी और जव ऐलोपैथ डाक्टर के पास जव एक शूद्र ज ता है वह यह नहीं कहता कि तुझे, तुझे दूसरी दवा कारगर होगी। ब्राह्मण के लिए है यह। यह जो पेनीसलीन है यह शूद्ध ब्राह्मणों के लिए है। तेरे लिए कोई शूद्र पेनी सलीन खोजनी पड़ेगी। वह अभी है नहीं। वह दोनों को लगा देता है। और बड़े मजे की बात है कि पेनीसलीन बड़ी ना समझ है वह दोनों को ठीक कर देती है ब्राह्मण को भी, शूद्र को भी। कोई फर्क नहीं करती। दुनिया के बड़े-बड़े संत हार गए, थक गए चिल्ला-चिल्लाकर कि सव एक है, शूद्र भाई है, फलां ढिका संत-वंतों की किसी ने भी नहीं सुनी। रेलगाड़ी चली और ब्राह्मण बैठा है उसके बगल में शूद्र बैठकर सिगरेट पी रहा है। व्र राह्मण बेचारा अपना खाना खा रहा है। और बगल में शूद्र बैठा है कुछ पता नहीं चल ता कौन-कौन है। क्योंकि रेलगाड़ी में हजार आदमी बैठे हैं रेलगाड़ी में ब्राह्मण को शू द्र को पास विठा दिया जो हजारों साल संग नहीं बैठ सके। रेलगाड़ी महासंग है। रेल गाड़ी को नमस्कार करना चाहिए। कि धन्य है तू जिसने ब्राह्मण और शूद्र को एक स Page 118 of 150 http://www.oshoworld.com

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