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भारत की खोज
के प्रति दया तो हो सकती है क्रोध नहीं हो सकता और उसके प्रति दूसरे की थ त को समझने के लिए एक सदभाव हो सकता है, दंड देने की कामना नहीं हो सक ती। वह जानेगा कि यही स्वाभाविक है जो हो रहा है इससे श्रेष्ठतर भी हो सकता है लेकिन स्वाभाविक की निंदा उसके मन में नहीं होगी । श्रेष्ठतर का जन्म हो इसकी प्रार्थना होगी, लेकिन स्वाभाविक की निंदा नहीं होगी ।
मनुष्य के स्वभाव को, निसर्ग को हम इनकार करते चले आ रहे हैं पांच हजार वर्षों से। सब तरफ से हमने आदमी के स्वभाव को इनकार करके एक लोहे की कैद खड़ भी कर दी है। उस कैद के भीतर आदमी को खड़ा कर दिया है। उसकी सारी मुक्ति छीन ली है। क्योंकि उसका सारा स्वभाव छीन लिया है और आश्चर्य की बात यह है कि तथ्यों के इस अस्वीकार से, तथ्यों के इस निषेध से, तथ्यों से आंख चुरा लेने से तथ्य बदल नहीं गए हैं सिर्फ छिप गए हैं, और उन्होंने भीतर से काम शुरू कर दि या है वह अनकोन्शस हो गए हैं। और जो तथ्य अचेतन में उतर जाते हैं अंधेरे में, और वहां से काम करते हैं, उनका काम और भी आत्मघाती हो जाता है। मैंने सुना है। एक मां, रात नींद में उठने की उसे आदत थी। वह रात नींद में उठ आई है और अपने मकान के पीछे के बगीचे में चली गई हैं, वह सपने में है । और नींद में ही जोर-जोर से बोल रही है। और अपनी जवान लड़की को गालियां दे रही है, और कह रही है कि इसी दृष्ट के कारण मेरी जवानी नष्ट हो गई। जवानी तो लड़की पर चली गई, और मैं बूढ़ी हुई जा रही हूं। तभी उसकी लड़की की भी नींद खुल गई है वह भी रात नींद में चलने की आदी है, वह बगीचे में पहुंच गई है। व ह नींद में उस बुढ़िया को वहां देखती है, आधी खुली आंखों से, और सोचती है कि दुष्ट बुढ़िया यहां भी मौजूद है । इसने मेरे जीवन को कांटा बना दिया है। इसके मौजूद. जब तक यह जिंदा है, तब तक मुझे स्वतंत्रता नहीं मिल सकती, तब तक मेरा जीवन एक परतंत्रता है। वह दोनों नींद में एक दूसरे को गालियां दे र ही हैं। तभी मुर्गा बांग देता है। दोनों की नींद खुल जाती है सुबह की ठंडी हवा है । बूढ़ी कहती है, 'बेटी, इतनी जल्दी उठ आई सर्दी ना लग जाए शााल नहीं डाल दी है।' बेटी अपनी मां के पैर छूती है। और कहती है कि, 'मां भीतर चलो ! सुबह बहु त सर्द है कहीं तुझे सर्दी, जुकाम ना पकड़ जाए।' नींद में वह क्या कह रहीं थीं । जा ग कर वह क्या कह रही है। हम कहेंगे नींद, नींद तो सपना थी । झूठ थी जो जाग कर कह रही है वह सच है । बात उल्टी है जो जागकर वह कह रही है वह झूठ है, जो नींद में उन्होंने कहा था वह सच है।
हम यही सोचते हैं कि सपने में जो हम देख रहे हैं वह झूठ है। लेकिन अब मनोविज्ञ कहता है कि, 'सपने में जो आप देख रहे हैं वह जो जागकर आप देखते हैं वह उससे ज्यादा सत्यतर है क्योंकि सपने में वही प्रकट हो रहा है जिसे आपने भीतर छि पा लिया है। बेटे बाप की हत्या कर रहे हैं सपने में, सुबह उठकर कहते हैं कि अरे सपना था वह सब झूठ है। लेकिन ऐसा बेटा खोजना मुश्किल है जिसने बाप की हत्य की कामना को कहीं अच्छे समय छिपा ना दिया हो। आदमी सपने में पड़ोसी की स्
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