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भारत की खोज
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एक बात, दूसरी बात यह अतीत का इतना गुणगान जो हम करते हैं, अतीत के स्व युग होने की गोल्डन ऐज होने की, रामराज्य होने की जो हम बातें करते हैं, यह अतीत इतना सुंदर कभी था नहीं जितनी हम कहानियां बनाए हुए हैं। लेकिन हमने यह कहानियां क्यों बनाई हैं इन कहानियों के पीछे बनाने के पीछे कुछ मनोवैज्ञानिक कारण हैं। एक बच्चा पैदा होता है। वह बच्चा भविष्य की तरफ देखता है। उसके पीछे कोई अतीत नहीं होता, एक बूढ़ा आदमी है बूढ़ा आदमी बैठकर अपनी आराम
कुर्सी पर आंख बंद करके अतीत की तरफ देखता रहता है बचपन, जवानी जो बी त गए। क्योंकि बूढ़े के आगे कोई भविष्य नहीं है, बूढ़े के आगे मौत है। मौत को दे खना नहीं चाहता वह पीछे लौटकर अतीत की स्मृतियां देखता रहता है । और जिन जवानी की स्मृतियों को बड़ा सुखद पाता है। कि जब वह जवान था तब वह इतनी सुखद नहीं थी।
और जिन बचपन की बातों को अब वह इतना स्वर्णीम बना लेता, सपने बना लेता है, वह बचपन वैसा ही साधारण बचपन था जैसा सबका होता है। लेकिन दुःखद को तो छोड़ देता है आदमी सुखद को संजो लेता है। एक चुनाव चलता है पूरे वक्त दुः खद को हम भूलते चले जाते हैं सुखद को याद करते चले जाते हैं बाद में जब लौट कर देखते हैं तो सुखद की एक लम्बी धारा दिखाई पड़ती है दुःखद भूल चुका होता है। हमारे अहंकार को दुःखद बर्दाश्त नहीं है । उसे हम अंधेरे में सरका देते हैं। सुख द को याद रखते हैं। बच्चों से पूछो कोई बच्चा नहीं कहेगा कि बचपन बहुत आनंद दे रहा है। बच्चे पूरे वक्त इस कोशिश में लगे हैं कि कव जवान हो जाएं, क्योंकि उ न्हें दिखाई पड़ रहा है कि जवानी बहुत आनंद मालूम पड़ रही है। छोटे-छोटे बच्चे रास्तों के किनारे गलियों में छिपकर सिगरेट पी रहे हैं। यह मत सो चना कि बच्चे सिगरेट इसलिए पी रहे हैं कि सिगरेट पीने में बहुत आनंद आ रहा है वह बड़ों को सिगरेट पीते देख रहे हैं। सिगरेट बड़े होने का सिम्बल है। वह उसे प कर बड़े होने की अकड़ से भर रहे हैं।
एक दिन सुबह मैं घूमने निकला सैर को, पोस्ट आफिस के पास से जा रहा था । एक छोटा-सा बच्चा हाथ में छड़ी लिए हुए, छोटी-सी मूंछ दो आने में खरीद कर लगाए हुए रास्ते पर चल रहा था। मुझे देखा एक दम घबरा गया, झाड़ी के पीछे छिप गया
मैं उसके पीछे गया। उसने जल्दी से अपनी मूंछ निकाल लीं। मैंने कहा, 'यह तू क या कर रहा है।' उसके पिता से मैं परिचित था, दोपहर उसके पिता से मिला। उन के पिता कहा, 'हमें पता नहीं है । यह मूंछ काहे के लिए लगाकर सुबह सड़क पर घूम रहा था।'
मैंने कहा, 'पता होना चाहिए बच्चों को बचपन बहुत साधारण मालूम होता है, जवा नी बहुत असाधारण, बड़ी ताकत, बड़ी प्रतिष्ठा तो छोटा बच्चा भी मूंछ लगाकर हा थ में छड़ी लेकर सेम व्यत्ति हो जाता है वह कोशिश करता है उसको मिलने की जो बहुत है। लेकिन यही बच्चा बूढ़ा होकर बचपन की याद करेगा और कहेगा कि बहु त सुंदर दिन थे। जो कौम बूढ़ी हो जाती है वह याद करती है अतीत के संबंध में,
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