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भारत की खोज
वनस्था से एक मित्र ने जाकर कहा कि, 'गांधी जी कहते हैं, कि दरिद्र नारायण है।' दरिद्रता भी एक आध्यात्मिक बात बनाए दे रहे हैं वह । वह थर्ड क्लास में चलते हैं
और कोई पूछता है कि, 'थर्ड में क्यों चलते हैं?' वह कहते हैं क्योंकि चूंकि फोर्थ क्लास नहीं है। वह गरीबी को एक आदर दे रहे हैं। वनस्था ने कहा, 'मैं गरीवी को
घृणा करता हूं। उतनी ही जितनी प्लेग को, मलेरिया को। और दुनिया से गरीवी ि मटनी चाहिए। जड़ मूल से मिटनी चाहिए, गरीवी को बचाने की जरूरत नहीं है। ले कन गरीबी को अगर आदर देंगे तो फिर गरीबी मिटेगी नहीं बचेगी। और हिंदुस्तान गरीबी को आदर दे रहा है। और आदर देने के लिए वह तरकीबें खोजता है, वह एक तरकीब तो यह खोजता है कि देखो, जिनके पास सब है उनके पास भी क्या है। अशांत वह भी है, अशांत हम भी हैं। खत्म हो गई बात। कुछ, कुछ वैज्ञानिक साधनों से संपत्ति पैदा करने की ज रूरत नहीं। लेकिन यह बुनियादी फर्क ठीक से समझ लेना चाहिए गरीब आदमी भीत र से हमेशा अमीर होना चाहता है यह स्वभाविक है। और अगर समझ-बूझ को उस ने अपने को गरीब बना कर रोक लिया तो वह अमीर भी नहीं हो पाएगा। और अ मीरी के बाद जो गरीवी का सूख है वह भी उसे कभी नहीं मिल पाएगा। अगर सारी दुनिया समृद्ध हो जाए। और सारी दुनिया समृद्ध हो सकती है आज। वि ज्ञान ने वह स्थिति पैदा कर दी है कि अगर दुनिया से राष्ट्र मिट जाएं, अव राष्ट्रभर
एक वीमारी रह गई है जिसकी वजह से दुनिया गरीव है। अगर दुनिया के राष्ट्र मि ट जाएं, और सारी दुनिया एक हो जाए तो आज विज्ञान ने इतनी ताकत पैदा कर दी है कि ना किसी को भूखे रहने की जरूरत है ना किसी को गरीव रहने की। सब समृद्ध हो सकते हैं। और अगर सब समृद्ध हो जाएं, तो मैं आपसे कहता हूं कि समा द्ध फिजूल हो जाएगी। और पहली दफा दुनिया में सरलता पैदा होगी, सादगी पैदा ह गी, अव तक पैदा नहीं हो सकी। अव तक सादगी एक तपश्चर्या रही है। लेकिन अ गर दुनिया पूरी समृद्ध हो जाए तो सादगी सहजता हो जाएगी। अगर सारी दुनिया में संपत्ति बिखर जाएं तो वह ऐसी ही हो जाएगी जैसे पानी और
हवा है। कोई उसकी चिंता नहीं करेगा किसी को समझाना नहीं पड़ेगा कि धन का मोह मत करो, धन छोड़ो त्याग करो, समझाना ही नहीं पड़ेगा। धन कम है। इसलि ए धन का मोह है। धन थोड़े लोगों के पास है। इसलिए धन की आकांक्षा है। धन इ तना कम है कि धन की तृष्णा है। धन इतने मुश्किल से मिलता है कि आदमी सब गवां कर धन को इकट्ठा कर लेता है और धन में कुछ भी नहीं पाता। कि मैं मुश्कि ल में पड़ जाता है, धन जिस दिन हवा पानी की तरह होगा और आज हो सकता है
लेकिन जिस देश में लोग गरीवी को आदर देंगे, और कहेंगे कि हम तो चरखा चला एंगे। हम बड़ी टैक्नोलोजी नहीं लाएंगे। हम तो पैदल चलेंगे, हम हवाई जहाज नहीं वनाएंगे हम तो बड़ी मशीन नहीं लगाएंगे। हम तो ग्रामोध्योग चलाएंगे, हम तो गांव गांव में स्वावलंबी बनेंगे। हम सैंटलाईज नहीं करेंगे। ऐसी वातें करने वाली कौम गर
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