Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 97
________________ भारत की खोज बनाए हए हैं कि यह पत्नी धर्म है. यह पति धर्म है। यह एक पतिवता है. यह प्रेम एक के साथ ही हो सकता है। और वह जो पशता की वत्ति है कि प्रेम भी पजेशन. प्रेम भी मालकियत चाहता है। प्रेम भी मालिक बनने का एक ढंग है। वह जो पशु क । प्रवृत्ति है वह काम कर रही है। लेकिन अच्छे सिद्धांतों में हम उसको घेर रहे हैं। पशु आपनी जमीन पर अगर दूसरे पशु को आ जाना वर्दाश्त नहीं कर सकता। वह ि जस जमीन पर रहता है. जिस झाड के नीचे रहता है उसके नीचे दसरे को ठहरना वर्दाश्त नहीं कर सकता। हार जाए तो ठहर सकता है, जीत जाए तो हटा देगा दुश्म न को। लेकिन शेयर नहीं कर सकता, बांट नहीं सकता। व्यक्तिगत संपत्ति उसी पशू ता का हिस्सा है। मेरी जमीन, मेरा मकान, मेरा घेरा, मेरे मकान की बाउंड्री की दी वार इस तरफ मत आना। एक इंच जमीन छोड़ना मुश्किल है। और हम आदमी है, और हम परमात्मा हैं, और भीतर वही पशू वैठा हुआ है। जो कहता है मेरी जमीन के घेरे से मत फंसना। लेकिन पशू बेचारे सीधे साफ हैं वह जैसे हैं, वैसे हैं, उन्होंने कोई फिलोस्फी खड़े करके धोखे की आढ़ नहीं ली। मैंने सुना है। एक आदमी और उसकी पत्नी ने यह तय किया हुआ था कि दोनों में से जो पहले मर जाए वह मरने के बाद जो जीवित है उसे संपर्क स्थापित करने की कोशिश करे, और उस जन्म उस जीवन के संबंध में बताएं जहां वह पहुंच गया है। पति को मरे हुए एक वर्ष हो गया। पत्नी रोज राह देखती रही कि पति संपर्क साधे गा, अव साधेगा अव । लेकिन नहीं, कुछ नहीं पता नहीं चला। कोई उपाय भी नहीं था सिवाय प्रतिक्षा के। लेकिन एक सांझ पत्नी अखवार पढ़ रही थी अचानक उसे पी त की आवाज सुनाई पड़ी, और पति ने कहा, 'अरे! सुनती हो, क्या कर रही हो, क्या खबर है आज की। अब पत्नी तो हैरान हो गई। वह ऐसे पूछ रहा है जैसे अभी दस मिनट पहले किनारे के चौरस्ते पर चाय पीने गय । हो, लौट कर आया हो। लेकिन एक वर्ष हो चुके उसके मरे हुए। पत्नी ने चौंककर देखा वह कहीं दिखाई नहीं पड़ता। उसने खुशी से कहा, 'अच्छा! तो तुम हो, कहां हो? मजे में तो हो।' उस आवाज ने कहा, 'बहुत मजे में हूं। और देखती हो पास के खेत में जो गाय चर रही है। उस गाय की चमड़ी बड़ी मुलायम है बहुत सुन्दर है ।' उस पत्नी ने कहा, 'और सुनाओ उस जीवन के बावत। उसे बड़ी हैरानी हुई कि गाय के बावत बता रहा है। और बताओ उस जीवन के बाबत। उस आदमी ने कह I, 'इतनी सुंदर गाय मैंने नहीं देखी, बहुत सुंदर है, बहुत आकृषित करती है। उसक । पत्नी ने कहा, 'छोड़ो उस मूर्ख गाय को उससे क्या लेना देना है। सवाल यह है ि क मैं जानना चाहती हूं उस जीवन के संबंध में कि तुम जहां हो वहां के संबंध में कुछ बताओ।' उस आदमी ने कहा, 'शायद मैं बताना भूल गया, कि मैं सांड हो गया हूं। और सिव य गाय के मुझे और कुछ भी नहीं सूझ रहा। लेकिन एक पशु सीधा है साफ है। व ह कहता है मैं सांड हो गया हूं, मुझे गाय के सिवाय कुछ भी नहीं सूझ रहा है। पुरु प को स्त्री के सिवाय कुछ भी नहीं सूझता। स्त्री को पुरुष के सिवाय कुछ भी नहीं Page 97 of 150 http://www.oshoworld.com

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