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भारत की खोज
बड़ी तरकीब है यह। आदमी पशु है यह भारत में यह आज तक स्वीकृत नहीं हो स का। और आदमी पशु है । पशुओं की बड़ी जमात्ता ही एक हिस्सा है। और जब तक हम आदमी की इस पशुता के तथ्य को यह रियल्टी है यह यथार्थ है इसको स्वी कार नहीं करते तब तक इसके रूपांतरण का भी कोई मार्ग नहीं मिल सकता है। ह मने क्या रास्ता निकाला है। हमने पशुता को इनकार ही कर दिया। हमने परमात्मा होने को स्वीकार ही कर लिया। हमारे शास्त्र घोषणा कर रहे हैं आदमी परमात्मा है । और वह जो हम हैं, इस परमात्मा के शोरगुल में उसको छिपाए बैठे हैं। ऊपर वा तें चलती जाती हैं, आदर्श की, भीतर वह जो असली अदमी है वह मौजूद है । और तब एक बड़ा तनाव पैदा होता है, बड़ी एनजाइटी, बड़ी चिंता पैदा होती है कि यह क्या है? और एक बड़ा दुःख पैदा होता है, बड़ा खीचाव पैदा होता है कि यह क्या है? हम हैं कुछ, और होने के कुछ और भ्रम में पड़े हुए हैं। और जो हम नहीं हैं उसको दिखाने का अभिनय कर रहे हैं। उसे दिखाने की पूरी चेष्ठा कर रहे हैं। और जो हम हैं उसे छिपाने की चेष्ठा कर रहे हैं।
भारत की प्रतिभा के विकास में एक डिच पैदा हो गई है, एक खाई पैदा हो गई है। और वह खाई है यथार्थ और आदर्श के बीच की खाई । और वह खाई इतनी बड़ी है कि हमने एक तरकीब से उसे पूरा कर लिया, यथार्थ को हमने भुला ही दिया है। और आदर्श को हमने स्वीकार कर लिया है कि हम यह हैं । वीज ने मान लिया है कि वह वृक्ष है और वृक्ष होने की यात्रा बंद हो गई हैं। मनुष्य क पशुता को स्वीका र करने में भी बड़ी कठिनाई होती है। क्योंकि हमारे अहंकार को चोट लगती है जब डार्विन ने पहली दफा यह बात कही, और डार्विन ने मनुष्य के आध्यात्मिक उत्थान के लिए एक बहुत बड़ा सूत्र स्थापित किया कि आदमी पशुओं से आता है । तो सार दुनिया के धार्मिक लोग डार्विन के विरोध में खड़े हो गए। उन्होंने कहा, 'यह क्या बात कर रहे हो। आदमी और पशुओं से, कभी नहीं । आदमी तो परमात्मा से पैदा हुआ है। आदमी तो परमात्मा है। आदमी तो परमात्मा का पुत्र है। पशुओं का पुत्र, झूठ है यह बात, यह हम स्वीकार नहीं कर सकते।'
लेकिन क्यों? क्योंकि पशुओं की संतती होने में अहंकार को चोट लगती है । वह जो आदमी ने अपनी ही कल्पना में अपने को परमात्मा मान रखा है। वह खत्म हो जात ा है। लेकिन तथ्य यही है । क्या है हमारे भीतर जो पशुओं के भीतर नहीं है ? वह ज ो पशुओं के भीतर है वही हमने नए नए रूपों में प्रकट हुआ है। वह जो पशुओं के भीतर है उसी श्रृखंला की हम आगे की एक कड़ी हैं। लेकिन आदमी बेईमान है। औ र उसने अपने को धोखा दे रखा है। और जो चीजें पाश्विक हैं उनको भी वह बहुत ऊंचे सिद्धान्तों के नाम पर सोने चांदी का मुलम्मा चढ़ा कर पेश करता L अगर मेरी पत्नी किसी की तरफ मुस्कराकर देख ले तो मेरे दिल में आग लग जाती है। छुरा निकल आएगा वहार प्रेम वगैराह सब विलीन हो जाएगा। वह वही की वह की बात, एक पशु की मादा अगर दूसरे पशु की तरफ देख ले तो खुंखार पशु फौरन दूसरे पर टूट पड़ेगा। वह उसके बर्दाश्त के बाहर है लेकिन हमने बड़े अच्छे सिद्धांत
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