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भारत की खोज
मैं जब उनसे मिलने गया तो वह एक बडे तल पर बैठे हए थे। उनके तख्त के नी चे एक छोटा तख्त लगा हुआ था। उस तख्त पर दूसरे संन्यासी बैठे हुए थे। उस तख त के भी नीचे जमीन पर और संन्यासी बैठे हए थे। सबसे बडे तल पर बैठे हए सं. यासी जो गुरु हैं जिनका वह आश्रम है जिन्होंने सव छोड़ दिया है उन्होंने मुझसे कहा कि. 'आपको पता है कि छोटे तख्त पर बैठे हए सज्जन कौन हैं?' मैंने कहा, 'मझे पता करने की कोई जरूरत नहीं है। अपना ही पता हो जाए वही वहत है। फिर भ | आप चाहते हो तो आप बता दें। उन्होंने कहा कि, 'आपको मालूम नहीं है इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं। यह जो आ दमी बैठा हुआ है यह साधारण आदमी नहीं है। यह हाईकोर्ट का जस्टिस था। इसने सब छोड़ दिया है। लेकिन बहुत विनम्र आदमी है, कभी मेरे साथ तख्त पर नहीं बैठ ता हमेशा छोटे तख्त पर बैठता है। मैंने कहा, 'विनम्रता तो जाहिर है छोटे तख्त से पता चल रही है। लेकिन आपको उनकी विनम्रता में जो मजा आ रहा है वह क्य । है? आपको वड़ा मजा आ रहा है कि अदमी वड़ा विनम्र है। विनम्रता आपके अहंक र को तृप्ति दे रही है। अगर यह आपके साथ तख्त पर बैठे तो तकलीफ होगी।' और मजा यह है कि यह आपसे छोटे तख्त पर बैठा है। लेकिन दूसरे संन्यासियों से ऊंचे तख्त पर बैठा है। और संन्यासी जमीन के नीचे बैठे हुए हैं। और यह आपके म रने की राह देख रहा है कि जब आप मर जाओ तो यह बड़े तख्त पर बैठ जाए। न
चे वाला काम्पटीटर छोटे तख्त पर आ जाए। और यह भी लोगों से कहे कि वहुत ि वनम्र आदमी है जानते हैं यह कौन है? यह मिनिस्टर था। यह कोई साधारण आदमी
नहीं है। और यह जो बनकर बैठा हुआ है। आंख बंद किए हुए बिलकुल सीधा-साध । वनकर वैठा हुआ है। लेकिन वैठा तो छोटे तख्त पर है। छोटे तख्त के नीचे भी लो ग हैं। हाई रेटी चल रही है। नीचे ऊपर पद चल रहे हैं। बच्चों का खेल चल रहा है। और यह आदमी कहता है कि मैं सब छोड़कर आ गया । और यह आदमी भी कहता है कि मैं सब छोड़कर आ गया। लेकिन क्या छोड़कर आ गए। वह खेल वह समाज के अहंकार का खेल। गृजारी वह एक शक्ल में चलता था वहां पड़ोस वाले का मकान छोटा था। अपना मकान बड़ा था वह वहां चल रहा था। अब वह यहां चल रहा है कि पड़ोस वाला नीचे तख्त पर बैठा है, हम ऊंचे त ख्त पर बैठे हैं। खेल जरी है शक्ल बदल गई है। वह पशुता का खेल जारी है लेकिन बदली हुई शक्ल में पहचानना और मुश्किल हो गया, और कठिन हो गया। एक गांव में मैं गया। वहां एक यज्ञ था। और उस यज्ञ में कोई साठ संन्यासी इकट्ठे हुए थे। यज्ञ करने वालों ने चाहा था कि साठों संन्यासी एक ही मंच पर एक साथ वै ठे तो बड़ा सुखद होगा, लेकिन उस बड़ी मंच पर एक-एक संन्यासी ने बैठकर ही व्य ख्यिान दिया क्योंकि साठों एक साथ एक ही तल पर बैठने को राजी नहीं हुए। किसी
ने कहा कि, 'मेरे सोने के सिंहासन चाहिए, मैं उसी पर बैलूंगा। मैं जगतगुरु हूं, मैं कोई छोटा-मोटा आदमी तो नहीं हूं। मैं फलां पीठ का शंकराचार्य हूं। मेरा चार इंच
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