Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 95
________________ भारत की खोज की हिम्मत जुटानी मुश्किल हो जाती है। भारत के चित्त पर जो जंजीरें हैं वह जंजी रें भी हैं और साथ सोने की हैं अच्छी-अच्छी बातों की हैं। संतों की है साधु-संन्यासि यों की हैं। उनको छोड़ना भी मुश्किल है । और वह जंजीरें भी हैं। और वह चित्त को पकड़े हैं, और वह चित्त को विकसित भी नहीं होने देती । वह चित्त को नए ढंग से सोचने की हिम्मत, नए ढंग से सोचने का साहस भी नहीं जुटाने देतीं । आदर्शवाद का क्या अर्थ होता है ? आदर्शवाद का अर्थ होता है, जो है वह महत्त्वपूर्ण नहीं है, जो होना चाहिए वह महत्त्वपूर्ण है । और जो है वही वस्तुतः महत्त्वपूर्ण है और जो होना चाहिए उसका कोई भी मूल्य नहीं है क्योंकि वह नहीं है। जो होना च ाहिए वह है नहीं। उसका महत्त्वपूर्ण है आदर्शवादी चित्त में और जो है उसका कोई मूल्य नहीं। और जो है उससे ही सारे मार्ग निकल सकते हैं। बीज, वृक्ष हो सकता है । लेकिन बीज वृक्ष है नहीं। बीज है बीज । वृक्ष होने की संभावना है। संभावना हो भ सकती है नहीं भी हो सकती । लेकिन बीज है। होने ना होने का सवाल नहीं है । और अगर बीज कहीं वृक्ष होने के सपनों में पड़ जाए, सपने देखने लगे, और सपने में मानने लगे कि मैं वृक्ष हो गया हूं तो बीज बीज रह जाएगा और वृक्ष कभी नहीं हो पाएगा। बीज को अगर वृक्ष भी होना है तो अपने बीज होने को ही समझना पड़ेगा। उसके बीज होने से ही वह मा र्ग निकलेगा जो वृक्ष तक पहुंचता है। लेकिन बीज एक सपना देखने लगे कि मैं एक वृक्ष हो गया हूं। और वृक्ष होने की कल्पना में खो जाए दिवास्वप्न में खो जाए, त बीज बीज ही बना रहेगा वृक्ष सपना होगा । और वृक्ष वह कभी भी नहीं हो पाएगा । भारत मनुष्य जो है, उसे भुलाने की कोशिश में लगा हुआ है। और जो नहीं है और जो होना चाहिए उसकी तस्वीर मनुष्य के चित्त पर उसका ढांचा, उसकी आकृति को खोजने में लगा है। हम एक-एक आदमी को समझा रहे हैं कि तुम स्वयं परमात्म हो। सच्चाई यह है कि हर आदमी परमात्मा नहीं है सिर्फ पशु हैं। आदमी शु है यह सत्य है। आदमी परमात्मा हो सकता है यह संभावना है लेकिन हम समझा रहे हैं आदमी परमात्मा है। साधु संन्यासियों के पास पापी बैठकर बहुत सिर हिलाते हैं। और कहते हैं धन्य महाराज बहुत ठीक आप कह रहे हैं क्योंकि वह साधु-संन्यासी स मझाते हैं क्या? वह समझाते हैं तुम परमात्मा हो, तुम्हारे भीतर स्वयं सच्चिदानंद व्र ह्म का निवास है। तुम वही हो, और पापी बड़ा प्रसन्न होता है। अपने को भुलने में सुविधा मिल जाती है। वह जो है, उससे बचने का रास्ता मिल जाता है। सपने में वह ब्रह्म हो जाता है । औ र वस्तुतः वह पशु बना रहता है। और उसके पशु होने में और ब्रह्म होने में एक दी वार खड़ी जाती है। होता है पशु, उसे छिपा लेता है। जो नहीं होता उसका अभि नय करने लगता है। और इस तरह भारत का पूरा व्यक्तित्व स्पलीट पर्सनेलिटी है। पूरा व्यक्तित्त्व खंड-खंड हो गया है। दो बड़े खंडों में टूट गया है जो हम नहीं हैं वह हम अपने को मानते हैं। और जो हम हैं वह हम अपने को जानना भी नहीं चाहते मानने की तो बात दूर है। हम उस तरफ आंख भी नहीं उठाना चाहते। Page 95 of 150 http://www.oshoworld.com

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