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भारत की खोज
मेरे एक मित्र . . . . में गए हुए थे। रास्ते भटक गए। कार से ही यात्रा कर रहे थे
रोप की। एक रास्ते पर जहां कोई नहीं है. एक बढा किसान सड़क के किनारे बैठ । हुआ तम्बाकू पी रहा है। गाड़ी रोक कर उससे पूछा, 'यह रास्ता कहां जाएगा।' व ह चुप रहा, फिर पूछा कि, क्या आप सुनते नहीं।' उसने कहा, 'मैं सुनता हूं लेकिन किसी कार वाले से पूछो हम तो पैदल चलने वाले हैं, हमसे क्या मतलव, हमसे क या संबंध।' तम कार वाले हम पैदल चलने वाला। किसी कार वाले से पछो यह रास ता कहां जाता है। हम अलग ही तरह के आदमी हैं। हम पैदल चलने वाले हैं हमसे तुम्हारा संबंध क्या? उन्होंने मुझसे कहा, 'उस आदमी ने यह कहा, कि हमसे तुम्हा रा संबंध ही नहीं है कोई तुम दूसरी तरह के आदमी हो। तुम उनसे पूछो जो तुमसे संबंधित हैं हमसे क्या पूछते हो। हम पैदल चलने वाले हैं कोई पैदल चलने वाला हो गा तो हम बताएंगे कि रास्ता कहां जाता है।' पैदल चलने वाले के मन में आग लग जाती है कार बगल से गजरती है तब। ईर्ष्या से भर जाता है वह कोई उसे नहीं देखता कि वह पैदल जा रहा है। लेकिन जब का र में चलने वाला आदमी पैदल चलता है चारों तरफ लोग देखते हैं। और मजा सम झ लिजिए आप। गरीब आदमी कार में क्यों बैठना चाहता है। क्योंकि गरीब आदमी को कार में बैठे तो लोग देखते हैं। और अमीर आदमी जब पैदल चले तो लोग देख ते हैं। दोनों की आकांक्षा एक है कि लोग देखें। लेकिन अमीर जव पैदल चले तव दे खेंगे और गरीब जब कार में बैठे तब देखेंगे। दोनों की आकांक्षा में बुनियादी फर्क न हीं है। लेकिन अमीर की आकांक्षा और गरीव की आकांक्षा में स्थान का फर्क है। औ र वह स्थान यह है कि वह अमीर पहुंचकर लौट रहा है। अमीर अनुभव से लौट रहा
है। गरीब अनुभव के पहले खड़ा है। इसलिए गरीव अगर संन्यासी भी हो जाएं तो भी ठीक अर्थों में संन्यासी नहीं हो पात । है क्योंकि जो उसने भोगा नहीं है, उसका त्याग कैसे कर सकता है। वह उसके म न में भोगने की कामना बनी ही रहती है। इसलिए गरीव अगर संन्यासी हो जाएं तो
बहुत जल्दी आश्रम खड़ा करेगा। और अमीरों के सारे ढंग उस आश्रम में इकट्ठे हो ने शुरू हो जाएंगे। गरीब अगर संन्यासी होगा तो आश्रम खड़ा करेगा। अमीर अगर संन्यासी होगा, तो आश्रम खड़ा नहीं करेगा। जानकर आप हैरान होंगे, कि महावीर के संन्यासियों ने कोई आश्रम खड़ा नहीं किया। वह पैदल चलते रहे उन्होंने आश्रम खड़ा ही नहीं किया। वह धनी घरों से आनेवाले लोग थे, वह बड़े-बड़े मकानों में रह
चुके थे। अब बड़े मकान बनाने का कोई सवाल नहीं था। गरीब घरों से जो संन्यासी आए जिन समजों के, उन्होंने बड़े-बड़े आश्रम खड़े कर लि ए और आश्रम में वही इंतजाम कर लिया जो गरीब आदमी अपने महलों में नहीं क र पाया था। एक शंकराचार्य हैं, कोई भी शंकराचार्य हो सोने का सिंहासन साथ लेकर चलते हैं। गरीव आदमी का सबूत है, यह गरीब घर से आ रहा है आदमी, गरीव ब्राह्मण है सं न्यासी हो गया है। सोने के सिंहासन पर बैठता है। वह कहता है नीचे मैं नहीं वैलूंगा,
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