Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 83
________________ भारत की खोज और वह आदमी कुछ दलीलें कर रहा है गाड़ी का गार्ड सीटी बजा रहा है झंडी दि खा रहा है। वह आदमी. . . और मित्र कह रहे हैं जल्दी अंदर चलो। मित्र कह रहा है पहले एक बात बता दो. इस गाडी से उतरना तो नहीं पडेगा. अगर उतरना ही पड़ा हो तो चढ़ने की क्या जरूरत है? चढ़ने से क्या फायदा है ? अगर उतरना ही है तो चढ़े क्यों? उस आदमी का दलील ठीक है। वह यह कह रहा है कि उतरना ही पड़ेगा इस गाडी से तो फिर हम नहीं चढ़ते। अगर ना उतरना हो तो चढ़ते हैं। अब वह मित्र कैसे समझाएं, गाड़ी छूटने को है उन्होंने जवरदस्ती उस आदमी को बिना समझाए भीतर गाड़ी के अंदर कर लिया। फिर गाड़ी हरिद्वार पहुंच गई। अब गाड़ी उतरने को है, स रे लोग उतर रहे हैं पिछले स्टेशन पर सारे लोग चिल्ला रहे थे अंदर चलो, अब सा रे लोग चिल्ला रहे हैं बाहर उतरो गाड़ी छूटने को है नीचे उतरो सामान निकालो, जल्दी वाहर आओ। अब वह मित्र फिर उसको पकड़े हैं वह मित्र कह रहा है कि ह म उतरेंगे नहीं, क्योंकि हमको चढ़ाया क्यों? जब चढ़ गए तो उतरें ही क्या? हम वै से लोग नहीं है कि चढ़ गए तो उतर जाएं। अब हम उतरने वाले नहीं हैं। जब उतरना ही था तो हम उतरे ही हुए थे हमको चढ़ाया क्यों? और वह मित्र कह रहे हैं कि, 'तुम विलकुल पागल हो उतरे हुए तुम अमृतसर पर थे यह हरिद्वार है। अगर वहीं उतरे रह जाते तो अमृतसर पर ही रह जाते, हरिद्वार नहीं आ पाते। य ह हरिद्वार है, यहां उतरो अब यात्रा पूरी हो गई। हिंदुस्तान का गरीव आदमी कहत । है कि अगर समृद्ध होने से भी अशांति रहती है तो हम समृद्ध ही क्यों हों? हम चढ़ें ही क्यों बकवास छोड़ो? हम गरीब ही ठीक हैं, अशांत तो हम पहले से ही हैं। लेकिन यह अमृतसर है खयाल रखना, वह हरिद्वार है। वह पहुंच कर उतर रहे हैं। आप पहुंचे ही नहीं हैं। दोनों के बिंदुओं में भेद है। वे ज हां खड़े हैं वह समृद्धि के बाहर है। हम जहां खड़े हैं वह समृद्धि के पहले। इसमें फ र्क समझ लेना जरूरी है एक आदमी भूखा मर रहा है अकाल में। विहार में अकाल पड़ा हुआ है एक आदमी भूखा मर रहा है, और दूसरा आदमी उर्लीकांचन में आकर उपवास कर रहा है। फर्क समझते हैं दोनों में, यह आदमी ज्यादा खा गया है ओवर फैड। जो उर्लीकांचन में आया हुआ है। यह ज्यादा खाने की वजह से उपवास कर र हा है। चले जाओ बिहार में और वहां भूखे आदमी से कहो कि, 'तू बड़ा सौभाग्यशा ली, भगवान की कृपा से, कि उर्तीकांचन जाने की जरूरत नहीं, तू यहीं उपवास क र रहा है।' तो उसकी समझ के बाहर होगा कि आप क्या कह रहे हैं ? उपवास, मैं भूखा मर रहा हूं उपवास करने वाला भूखा नहीं मर रहा है। ज्यादा खा गया है ज्या दा खाए को वह उतार रहा है। वह वहां लौट रहा है नौर्मल होने की हालत में। वह आदमी वेचारा उसको खाना ही नहीं मिला वह मरने की हालत में है उसे भोज न चाहिए ताकि वह नौर्मल हो सके। इन दोनों की यात्राएं अलग हैं एक अमतसर प र है, एक हरिद्वार पर। उपवास में और भूखे मरने में फर्क है। गरीव आदमी भूखा मरता है अमीर आदमी उपवास करता है। जिन समाजों के पास ज्यादा पैसा होता है Page 83 of 150 http://www.oshoworld.com

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