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भारत की खोज
की जरूरत ही ना पड़ती। चोरों को चोरी करने की जरूरत नहीं, राजधानी में बड़ेबडे महल बनाकर वह बैठे हए हैं। चोर को चोरी की कोई जरूरत ही नहीं है। यह चोर, इसको चोरी की क्या जरूरत होती अव तक महल खड़े कर लिए होते, तिजो रयां भर ली होती इसने। यह आदमी बहुत सीधा-साधा है।'
नो वहत घवराया. उसने कहा, 'सीधा-साधा आप कहते हैं आपके घर यह चो री करने नहीं गया। उसने कहा, 'पागल है यह. जिस घर में कछ भी नहीं है दो म ल गांव छोड़कर वहां गया था। यह बहत दीनहीन है, यह बहत दरिद्र है, यह चोर कैसे हो सकता है? यह दया के योग्य है। और जिस समाज ने इसे इतना दीनहीन ब नाया, वह समाज चोर है। लेकिन ऐसे आदमी को समझना बहुत मुश्किल हो जाएग ।। यह आदमी इस चोर में भी चोर को नहीं देख पा रहा है। इस चोर में भी यह अ और कुछ देख पा रहा है, जो हमें दिखाई पड़ना मुश्किल हो जाए। क्यों? हम तो इस में चोर ही देखना चाहेंगे ताकि हमारे भीतर के चोर को राहत मिल जाए। दूसरे की तरफ देखकर हम अपने को तृप्त कर रहे हैं। अपने को तृप्त इस तरह कर ना बहुत खतरनाक है। इसलिए मत पूछे कि हम दूसरे में कैसे पहचानें कि क्या अस ली है और क्या नकली है। जानें, खोजें खुद में क्या असली है और क्या नकली है। एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि, पश्चिम में मटीरियललिज्म है वहां भी लोग शांत न ही हैं। वहां भी बड़ी अशांति है।' भारत इस तरह की बातें सुनकर बड़ी तृप्ति अनुभव करता है। अच्छा वह भी अशां त हैं। तो फिर ठीक है हम भी अशांत हैं तो फिर क्या वजह है? लेकिन मैं आपसे कहना चाहता हूं, गरीब की अशांति में अमीर की अशांति में बुनियादी फर्क है। गरी व की अशांति अभाव की अशांति है, और अभाव की अशांति बहुत खतरनाक है। अ मीर की अशांति अभाव की नहीं, अतिरेक की एफ्यूलैंस की अशांति हैं और अतिरेक
की अशांति बहुत स्वभाविक है क्यों? क्योंकि गरीब अपनी अशांति में रोटी-रोजी के सिवाय कुछ भी नहीं सोच सकता, और अमीर अपनी अशांति में परमात्मा के संबं ध में खोजना और सोचना शुरू कर देता है। गरीब अशांत होता है तो उसकी कामना पदार्थ के लिए होती है। और अमीर अशांत होता है तो उसकी कामना परमात्मा के लिए शुरू हो जाती है। यह बहुत अदभुत बात है कि जो मटिरियलिस्ट हैं भौतिकवादी है वह आध्यात्मिक हो सकते हैं। लेकिन जो निपट थोथे अध्यात्मवादी हैं वह सिवाय भौतिकवादी के कुछ भी नहीं हो सकते। इसलिए पश्चिम में एक अशांति है, लेकिन वह अशांति सौभाग्यपूर्ण है। पश्चिम उस जगह पहुंच गया है जहां से पदार्थ व्यर्थ हो जाएगा। धन मिल गया है, मकान मिल गए हैं, सब मिल गया है जो मिल सकता था। लेकिन अब क्या करें, अब कहां जा एं, अब कहां खोजें, वाहर खोज लिया है। बाहर जो मिल सकता था मिल गया है। लेकिन फिर भी शांति नहीं है। पश्चिम की भीतर की खोज शुरू हो जाएगी, हो गई
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