Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 79
________________ भारत की खोज ब है. क्यों? वह सोचता है अपने खराव होने में कोई खास हर्जा नहीं ऐसा है ही। अगर कोई अखबार अच्छी अच्छी खबरें छापे तो अखबार विकेगा ही नहीं। क्योंकि क न खरीदेगा? अखवार को बरी खबरें छापनी पडती हैं ना मिले तो बनानी पडती हैं. झठी भी गढ़नी पड़ती हैं। क्योंकि बरा आदमी बरी खबरें पढ़ने को घर के भीतर ज ग कर बैठा हुआ है चाय पीकर। वह खवर पढ़ना है न्यूज पेपर कहां हैं। क्योंकि वह तृप्त हो सके कि अव दिन भर वूरा करो, सारी दुनिया में पूरा हो रहा है। इसलिए अखबार अच्छी खबर छापने में मजबूर है नहीं छाप सकता, विकेगा नहीं। बू रा आदमी अखबार पढ़ने की आतुरता से प्रतिक्षा कर रहा है वह जानना चाहता है ि क हर आदमी अपराधी है, क्यों? क्योंकि वह अपने अपराध के बोझ को कम करना चाहता है जव सभी अपराधी है तो हर्ज क्या है। फिर मैं भी हूं आखिर मैं भी तो सव जैसा ही हूं। फिर बदलने की जरूरत भी क्या है? दुनिया ही ऐसी है दूसरे की रफ हम देखते हैं, हम जैसे हैं उससे बचने के लिए। और जिस आदमी को अपने को बदलना है। वह अपनी तरफ देखता है दूसरे की तरफ नहीं। एक छोटी-सी बात फिर दूसरे प्रश्न की बात करूं | मैंने सुना है जापान में एक फकीर था, एक साधु। एक रात आधी रात अपने कमरे में बैठा हुआ एक पत्र लिख रहा है। किसी ने दरवाजे पर आकर धक्का दिया, कोई चोर. . .। दरवाजा अटका था खु ल गया। चोर ने समझा साधु सो गया होगा, साधु ने आंखें उठाई, चोर घबरा गया। उसने छुरा निकाल लिया। साधु ने कहा, 'छुरे को भीतर रखो। यहां कोई जरूरत ना पड़ेगी। आओ अंदर आ जाओ।' चोर इतना घबरा गया, इसलिए नहीं कि साधु के हाथ में कोई छुरा था। जिसके हाथ में छुरा है उससे बहुत घबराने की जरूरत न हीं। क्योंकि छुरे के खिलाफ छुरा उठाया जा सकता है। वह साधु निहत्था वैठा था। और जोर से हंसने लगा। उसने कहा, 'रख लो छुरा भी तर कोई जरूरत ना पड़ेगी। आओ बैठ जाओ कैसे आए, बड़ी रात आए।' वह आदम घिबराहट में बैठ गया। तो साधु ने पूछा, 'कोई जरूरी काम से ही आए होगे, इतन रात कोई भी तो नहीं आता। गांव दूर है कैसे आए क्या जरूरत पड़ गई। मैं क्या सेवा कर सकता हूं बोलो।' वह चोर तो घबरा गया। लेकिन इतने सच्चे आदमी के सामने झूठ बोलना भी बहुत मुश्किल हो जाता है। तो उस चोर ने कहा, 'क्षमा करें, मुझे जाने दें मैं किसी काम से नहीं आया, मैं चोरी करने के खयाल से आया हूं। उस साधु ने कहा, 'चारी करने के खयाल से, लेकिन वड़ा मुश्किल है, झोपड़े में तो कुछ है ही नहीं। और अगर आना था तो पहले खबर करनी थी यह तो फकीर का झोपड़ा है नहीं तो कुछ इंतजाम करके रखते। बड़ी गलती हो गई सूबह ही एक आ दमी सौ रुपए भेंट करता था। मैंने उसे वापस लौटा दिए। नहीं माना तो सिर्फ दस रु पए रखे, दस रुपए से काम चल जाएगा। अव दुवारा कभी आओ तो गरीब आदमी का खयाल रखकर आना चाहिए पहले खवर करनी चाहिए। अमीर के घर में विना खबर जा सकते हो। हम गरीव है हमारे घर में विना खबर किए नहीं आना चाहिए, इसमें हमारा बहुत अपमान होता।' Page 79 of 150 http://www.oshoworld.com

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