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भारत की खोज
न शुरू हो जाता है। जीवन में जो क्रांति आती है वह आपके बदलने से नहीं आती। आपके जानने से आती है। ज्ञान के अतिरिक्त और कोई क्रांति नहीं। नौलिज इज ट्रां सफोरमेशन। बस ज्ञान की ही क्रांति है। लेकिन हम ज्ञान से ही बचते हैं और अज्ञान में जीते हैं।
और हम लोगों से पूछते हैं अहिंसा लाना है तो क्या करें ? क्रोध हटाना है तो क्या करें? अशांति मिटानी है तो क्या करें ? दूसरों से पूछते हैं ।
एक मित्र मेरे पास आए और मुझसे कहने लगे कि, 'मैं श्री अरविंद आश्रम गया त नहीं मिली वहां भी, ऋषिकेश गया वहां भी शांति नहीं मिली, किसी ने आपका नाम लिया आपके पास आ गया छः महिने से भटक रहा हूं, कृपा करके मुझे शांति दें।' मैंने उनसे पूछा, ‘अशांति लेने के लिए किस आश्रम गए थे।' अरविंद आश्रम ग ए थे, ऋषिकेश गए थे, मेरे पास आए थे। अशांति खुद ही पैदा कर ली, बड़े काईय ां और चालाक मालूम होते हैं। और शांति दूसरों से पाने के लिए निकले हुए हैं। स ढंग से अशांति पैदा की है उस ढंग को समझो। शांति पैदा होनी शुरू हो जाएगी । क्योंकि अशांति तुमने पैदा की है, मैंने पैदा की है। तो मैं जानू कि मैंने शांति कैसे पैदा की है। मैं जानता हूं कि मैंने कैसे पैदा की है । उसको बदलना भी नहीं च ता। अशांति के जो कारण हैं उनको देखना भी नहीं चाहता । फिर किसी गुरु पू छता हूं कृपा हो जाए प्रसाद मिल जाए भगवान का कि चित्त शांत हो जाए।' अशांति के कारण भी नहीं बदलना है । और शांत भी होना है यह असंभव है। इसलि ए मैं कहता हूं कि शांति को खोजना ही मत । अशांति को खोजना। अशांति को जो खोज लेता है वह शांत हो जाता है। अहिंसा को खोजना ही मत, हिंसा को पहचानन TI जो हिंसा को पहचान लेता है वह अहिंसक हो जाता है। घृणा को छोड़ना ही मत
प
जो छोड़ेगा वह खतरे में पड़ जाएगा। क्रोध को छोड़ना ही मत, जो छोड़ेगा उसके भीतर क्रोध इकट्ठा होने लगेगा। ना ही क्रोध को जानना, पहचानना, क्रोध को देखना समझना और क्रोध विलीन हो जाएगा। जो अशुभ है वह ज्ञान के सामने टिकता ही नहीं। जैसे दीए के सामने अंधेरा नहीं टिकता । ऐसे ज्ञान के सामने अशुभ नहीं टिक
ता।
वह जो नकली आदमी है उसको देखें। वह नकली आदमी विदा हो जाएगा वह कब घर छोड़कर चला गया। और असली आदमी आ गया। इसका पता भी नहीं चलेगा। लेकिन हम कहते हैं कि दूसरे आदमी में कैसे पहचानें। दूसरे आदमी में पहचानने की पहली तो बात जरूरत नहीं, दूसरी बात, दूसरे आदमी को पहचानने में समय खोना खतरनाक है, समय बहुत सीमित है, समय बहुत अल्प है। उसका अपने काम में ल गाईए। तीसरी बात दूसरे आदमी में नकली आदमी देखकर प्रसंन होने का चित्त होत है। यह सब नकली हैं तो हर्ज क्या है आगर हम भी नकली हुए।
एक तृप्ति मिलती है कि सभी नकली हैं आदमी सुबह से अखबार पढ़ता है और उस में देखता है फलां जगह हत्या हो गई, फलां जगह चोरी हो गई, फलां जगह फलां औरत फलां आदमी के साथ भाग गई। वह बहुत खुश होता है कि सारी दुनिया खरा
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