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भारत की खोज
हो गया कि जो अतीत में है, जो पुराना है उसे पकड़ना है क्योंकि वही सत्य है, व ही ऋषि मुनियों का जाना हुआ है। वही ज्ञानियों का कहा हुआ है। हम अज्ञानी कैसे खोज सकते हैं? हम तो सिर्फ मान सकते हैं ।
तो फिर, फिर पूरे मुल्क की जीवन चेतना एक कोल्हू के बैल की तरह चक्कर लगा ने लगेगी। फिर सीधी रेखा में गति नहीं होगी, फिर हम चक्कर लगाते रहेंगे। फिर हमारा एक ही काम होगा कि हम पुराने को सिद्ध करने की सारी ताकत लगाते रहें
समस्याएं हमारी फिक्र नहीं करेंगी वह बदलती चली जाएंगी। वह इस बात की चिं ता नहीं करेंगी कि आपके लिए रुकी रहें। वह रोज बदलती चली जाएंगी। और हम, हम रोज पिछड़ते चले जाएंगे।
भारत कंटैपररी नहीं है। हम बीसवीं सदी में नहीं रह रहे हैं। हम रह रहे हैं कोई ई सा से एक हजार साल पहले, कोई तीन हजार वर्ष पहले ।
हम वहीं ठहरे हैं जहां गीता और मनु, महावीर और बुद्ध ठहर गए हैं। हम उसके आगे नहीं बढ़े, तीन हजार साल से हमारी चेतना इस चक्कर में घूम रही है । और एक ही काम कर रही है कि पुराने का गुणगान करो, पुराने को सिद्ध करो पुराना ठ ̈ीक है। और पुराने को ज्यादा पुराना सिद्ध करो। जाहिर है कि हमारे वेद पांच हजार
वर्ष से ज्यादा पुराने नहीं हैं लेकिन हमारे मन को बड़ी चोट लगती है। अगर कोई यह कहे कि वह पांच हजार वर्ष पुराने हैं। ऐसे लोग है इस मुल्क में जो पचहत्तर ह जार वर्ष पुराना सिद्ध करना चाहते हैं, नब्बे हजार वर्ष पुराना सिद्ध करना चाहते हैं । ऐसे लोग भी हैं जिनकी तृप्ति इससे भी नहीं होती जो कहते है वह सनातन हैं। व ह हमेशा से समय में उनको बांधा नहीं जा सकता। ऐसे लोग भी है जो कहते हैं पह ले वेद बना और फिर सब बना।
यह पीछे खींचने का पागल मोह क्या है ? क्यों पीछे खींचना चाहते हैं? यह पीछे खीं चने का मोह इसलिए है कि हमारा खयाल यह है कि जो जितना पुराना है उतना स त्यतर है, उतना शुद्धतर है। जो जितना नया है उतना अशुद्ध है, उतना गलत है। पुराना होना ही बड़े बहुमूल्य बात है। शराब के संबंध में तो कहा जाता है कि पुरान
शराब अच्छी होती है। लेकिन सत्य पुराने अच्छे नहीं होते। लेकिन हम सत्य सा थ भी शराब का ही व्यवहार कर रहे हैं। उसको भी पुराना सिद्ध करने में बड़ी ताक त लगाते हैं।
अब सत्य कोई नशा लाने के लिए थोड़े है। शराब इसलिए अच्छी होती है कि जितन पुरानी होती है उतनी सड़ जाती है जितनी सड़ जाती है उतनी नशे वाली हो जा है। सत्यजितना पुराना हो जाता है उतना ही सड़ जाता है उतना ही खतरनाक हो जाता है उतना फैंकने योग्य हो जाता है। सत्य रोज नया चाहिए। हां, शराब पु रानी चल सकती है। लेकिन कुछ लोग शास्त्रों के साथ भी वही करते हैं जो शराब के साथ करते हैं। शास्त्र भी उनकी शराब हैं। और इसलिए पुराना करने की कोशिश चलती है कि हमारा शास्त्र तुमसे ज्यादा पुराना है। हिंदुस्तान की प्रतिभा का ज्यादा समय इस तरह की नौनसैंस में बेवकूफिओं में खर्च होता है।
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