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भारत की खोज
है जो धार्मिक आदमी के ढोंग को खोल देती है। उसमें उन्होंने लिखा है कि, 'शास्त्र में में लिखा हआ है कि दान के विना मोक्ष नहीं और दान तो तभी हो सकता है ज व दान लेन वाले गरीब दुनिया में हों। इसलिए समाजवाद अधार्मिक है। क्योंकि समा जवाद से गरीब मिट जाएंगे और कोई दान लेने वाला नहीं होगा तो मोक्ष को कोई कैसे जा सकता है। समाजवाद के खिलाफ जो दलील वह दे रहे हैं वह बड़ी अदभुत
है। वह यह कह रहे हैं कि गरीव रहना चाहिए भीखमंगा रहना चाहिए तो दया कै से करोगे और बिना दया के मोक्ष कैसे जाओगे? दुनिया में दया के लिए भीखमंगों का रखना बहुत जरूरी है। यह दयावान है जिसने दुनिया बनाई है जिसमें भीखमंगे पैदा हुए हैं और यह दयावान दो-दो पैसे देकर भीख मंगे को मिटा नहीं रहे हैं भीखमंगे को जिला रहे हैं। जिंदा रखना चाह रहे हैं। लेकि न कोई देखने नहीं जाता भीतर कि मेरे क्या है? एक तरफ मैं हजारों रुपए इकट्ठे करूं और दूसरी तरफ दो पैसे दान करूं और दयावान हो जाऊं, दानवीर हो जाऊं। यह धोखा है यह झूठा आदमी, और कहां खोजने जाना पड़ेगा कि झूठा आदमी हम देखें। हम अपने झूठे आदमी को सब तरह से जस्टीफाइ करते हैं उखाड़ते नहीं हैं। उसको सब तरह से न्याययुक्त ठहराते हैं। हम सब तरह की दलीलें खोजते हैं कि वह हमार । झूठा जो आदमी हमने ऊपर चढ़ा रखा है वही सच्चा है। और जब तक कोई आद मी इस कोशिश में लगा रहे कि अपने झूठ को ही सत्य सिद्ध करता रहे, अपने वस्त्र ों को ही कहे कि यह मेरी आत्मा है, तब तक वह आदमी धार्मिक नहीं हो सकता, उस आदमी के जीवन में वह क्रांति नहीं हो सकती जिसके आदमी के अंतिम परिणा म में प्रभु के मंदिर का द्वार खुलता है। झूठा आदमी प्रभु के मंदिर में प्रविष्ठ नहीं हो सकता। उस मंदिर में तो वह ही प्रविष्ठ हो सकते हैं जो सच्चे हैं अथेटिक हैं जो व ही हैं जो हैं। इस अर्थ में मैंने सुबह कहा कि, 'हम सब झूठे आदमी हो गए हैं, हमारा पूरा समाज
झूठा हो गया। और जब मैंने यह कहा कि, 'मेरा मतलब यह नहीं था कि दूसरा झूठा हो गया, मेरा मतलब यह था कि हम झूठे हो गए हैं मैं झूठा हो गया हूं।' इस झूठ की खोज करनी चाहिए यह कौन बताएगा कि कैसे? हम खुद जानते हैं। हम भलीभांति पहचानते हैं, जब हम मुस्कराते हैं तो हमारी मुस्कराहट सच्ची है भीतर आग जल रही है और क्रोध जल रहा है। रास्ते पर एक आदमी मिलता है और हम
कहते हैं आपसे मिलकर बड़ी प्रसन्नता हुई और भीतर मन कहता है इस दृष्ट का सुबह-सुबह से चेहरा कैसे दिखाई पड़ गया। अब कौन वताएगा कि झूठ है। आदमी कहां खोजने जाना है। घर में कोई मेहमान अ [ गया और हम कहते हैं कि बड़ा आनंद आ रहा कि आप आ गए। और प्राण संकट में पड़े हैं कि यह मेहमान आ कैसे गया पहले पता चला जाता तो ताला लगा कर कहीं खिसक गए होते, कहीं चले गए होते। लेकिन चूक हो गई। इसीलिए मेहमान को हम पुराने समय में अतिथि कहते थे अतिथि कहते थे। जो बिना तिथि की खबर
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