Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 71
________________ भारत की खोज लोग विचार करने लगते हैं पड़ोसी के बाबत कि वह कैसा है। जरूर सफेद कपड़े पह नता है भीतर काला आदमी होगा। हम सब पड़ोसी के संबंध में चिंतन करते हैं । विचारशील व्यक्ति अपने संबंध में चिंत न करेगा। क्योंकि पड़ोसी के संबंध में चिंतन करने से क्या प्रयोजन है, क्या अर्थ है ? हल तो एक ही हो सकता है कि मैं अपने संबंध में निरीक्षण करूं कि मैं कैसा आद मी हूं। और मैं आपसे कहना चाहता हूं अगर मैं निरीक्षण करूं और मुझे दिखाई पड़ जाएं कि मैं नकली आदमी हूं तो बदला है तर्कक्षण शुरू हो जाएगी कभी नहीं बढ़ेग TI इसीलिए हम निरीक्षण नहीं करना चाहते हैं क्योंकि निरीक्षण क्रांति की शुरूवात है। अगर मैं जान लूं कि मैं झूठा आदमी हूं तो इस झूठे आदमी के साथ जीना मुश्कि ल हो जाएगा। इस झूठे आदमी को बदलना ही पड़ेगा । इसलिए देखता ही नहीं अपनी तरफ, दूसरे की तरफ देखता हूं। आंखें सदा दूसरे की तरफ देखती रहती हैं। हम दूसरों की निंदा में इतने उत्सुक होते हैं आनंददीत होते हैं उसका कोई और कारण नहीं है। अपनी तरफ देखने से हम बचना चाहते हैं इस लए दूसरे की निंदा में संलग्न हो जाते हैं और ध्यान रहे चोर दूसरों की चोरी की नदा करता हुआ दिखाई पड़ेगा, बेईमान दूसरों की बेईमानी की निंदा करता हुआ दि खाई पड़ेगा, क्यों? अपनी बेईमानी को देखने से बचना चाहता है। हम सब अपने से बचना चाहते हैं। हम सब यह चाहते ही नहीं कि हमें दिखाई पड़ जाए कि हम कौन हैं ? नकली और असली कहीं और खोजने नहीं जाना है अपने ही भीतर खोज लेना है। व स्तुतः मेरे भीतर क्या है ? जब मैं एक भीखमंगे को दो पैसे दान करता हूं तो मेरे भ ळीतर भीखमंगे के प्रति दया है या चार लोग मुझे देख रहे होंगे कि मैं दो पैसे दान क रता हूं। यह भाव... इसलिए भीखमंगे आपसे अकेले में भीख मांगने में बहुत डरते हैं। चार मित्रों के साथ आप खड़े हों तो वह बिलकुल हाथ पैर जोड़कर खड़े हो जा एंगे। वह चार आदमियों की आंख में आपकी इज्जत का फायदा उठाना चाहते हैं, व ह भी जानते हैं कि आदमी कमजोर है कहां कमजोर है। कोई दया से कोई दान नह ीं करता। अहंकार की तृप्ति के लिए दान होते हैं। तो भीखमंगा देखता है कि जब आदमी सड़क पर हो चार आदमी देख रहे हों और इनकार ना कर सके तो पैसों के लिए तब हाथ फैला देता है। आपको अगर दया आ ए तो आप दो पैसे देकर मुक्त नहीं हो जाएंगे दया इतनी सस्ते में मुक्त नहीं हो स कती। अगर एक भीखमंगे पर दया आए, तो आप एक ऐसे समाज को बनाने की चेष् ठा करेंगे जहां भीख ना मांगी जा सके जहां कोई भीखमंगा ना हो। लेकिन अगर आ पको मजा आता है अहंकार का कि मैंने दिए दो पैसे एक गरीब आदमी को तो आप एक ऐसा समाज बनाएंगे जिसमें गरीबी रहे, भीखमंगा भी रहे नहीं तो आप कसको देंगे। मुझे खयाल आता है कि करपात्री जी ने एक है रामराज्य और समाज द्वार। उस किताब Page 71 of 150 किताब लिखी है उस किताब का नाम उन्होंने एक बहुत मजेदार बात लिखी http://www.oshoworld.com

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