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भारत की खोज
हुए हैं । गुरु
भी डरा हुआ
को पकड़े हुए हैं। और कोई भी नहीं पूछ रहा कि दो डरे हुए आदमी अगर इकट्ठे हो जाएं तो डर दुगना हो जाता है। आधा नहीं । गुरु शिष्यों को पकड़े हुए हैं, शिष्य गुरुओं को पकडे है कि अगर शिष्य खो गए तो मैं अकेला पड़ जाऊंगा । तो गुरु भी संख्या रखता है कि कि तने अपने शिष्य हैं । एक शिष्य खोने लगता है तो मन को बड़ी पीड़ा होती है। जैसे एक ग्राहक को खोते देखकर दूकानदार दुःखी होता है, एक शिष्य को खोते देखकर गुरु दुखी होता है। शिष्य को डर लगता है कि कहीं गुरु ना छोड़ दे और दोनों डरे हुए एक दूसरे को पकड़कर भीड़ किए हुए हैं। और यह भीड़ करीब-करीब वैसी ही है जैसे कोई नाव डूब रही है। और डूबती हुई नाव में सारे लोग एक ही तरफ एक ही कोने में दौड़कर इकट्ठे हो जाएं। उनके दौड़ने और इकट्ठे होने से नाव बचेगी नह ळीं, जल्दी डूबेगी।
वह अकेले अकेले खड़े रहें नाव पर तो नाव बच भी सकती है, लेकिन जहां सब भा ग रहे होंगे वहीं नाव के सारे यात्री भागेंगे और एक ही कोने में सब एक दूसरे को पकड़ कर करीब करीब खड़े हो जाएंगे। जैसे करीब करीब खड़े होने से अकेलापन मटता है किसी को कितना ही छाती से लगा लो। फिर भी अकेलापन नहीं मिटता जसे छाती से लगाया वह भी अकेला है । जिसने लगा लिया वह भी अकेला है। अके लापन नहीं मिटत, सिर्फ भ्रम पैदा होता है कोई सांस है। कोई सांस नहीं है। और जो आदमी इस सत्य को समझ लेता है कि कोई साथ नहीं है टोटल एलोन । टो टली एलोन समग्री भूतरूप अकेला हूं। इस बात की पूरी पूरी समझ और इस अके लेपन से बचने के सब उपाय झूठे हैं कोई उपाय कारगर नहीं हैं। जिस दिन यह सम झ पूरी साफ हो जाती है उसी दिन आदमी भय से मुक्त हो जाता है। उसी दिन अ भय को उपलब्ध हो जाता है, वह उसी दिन भविष्य के लिए उन्मुख हो जाता है, व ह उसी दिन नए के लिए स्वागत का द्वार खुल जाता है, उसी दिन जीवन को जीने की क्षमता, साहस, एडवेंचर, अभियान शुरू हो जाता है।
एक व्यक्ति के लिए भी यह सच है । एक समाज के लिए भी यही सच है, चेतना मु क्त होनी चाहिए भय से । लेकिन भय से हम मुक्त नहीं हैं। और इस लिए हम अती त से बंधे हैं। एक बात मौलिक कारण जो है वह सुरक्षा का आग्रह है । और सुरक्षा का आग्रह भयभीत आदमी की मांग है। और भयभीत आदमी कितनी ही सुरक्षा करे कुछ हो नहीं सकता, सब सुरक्षा और भयभीत करेगी, फिर और सुरक्षा करनी पड़े गी, फिर और सुरक्षा करनी पड़ेगी ।
रविंद्रनाथ के घर में कोई सौ लोग थे। बड़ा परिवार था । मनों दूध आता था, रविंद्रन नाथ के एक भाई थे। उन्होंने देखा कि दूध में पानी मिल कर आता है। तो उन्होंने ए क नौकर रखा और कहा कि, 'दूध का निरीक्षण करो । पानी मिला दूध घर ना आने पाए।' लेकिन घर के लोग हैरान हुए जिस दिन से नौकर रखा उस दिन से दूध में और ज्यादा पानी आने लगा। क्योंकि उस नौकर का हिस्सा भी जुड़ गया
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