Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ भारत की खोज चीत करते हैं, वह खेत में नकली आदमी सब पहचान लेते हैं। डंडा गढ़ा है, हांडी लगी है, कुर्ता पहना हुआ है। वह खेत में किसान लगाए हुए है जानवरों को डराने के लिए है। एक दार्शनिक खेत के नकली आदमी के पास से गुजरता था । अनेक बार गुजरा था वर्षा, धूप, गर्मी, रात, दिन वह नकली आदमी वहीं अकड़कर खड़ा रहता था । नक ली आदमी हमेशा अकड़े हुए रहते हैं। क्योंकि अगर अकड़ चली जाए तो कहीं नकल ना खुल जाए । तो जहां भी अकड़ा हुआ देखें तो समझना कि नकली आदमी है। औ र नकली आदमी अकड़ की जगह की तलाश में रहता है। ऐसी कुर्सी मिलनी चाहिए जिस पर अकड़कर बैठ सके। तो वह दिल्ली तक की यात्रा करता है, वह सब नक ली आदमियों की यात्रा है । वह खेत में नकली आदमी खड़ा है वह कई दफा दार्शनि क वहां से निकला है। कई दफा उसका मन हुआ कि इस मूर्ख से पूछे, 'तू अकेला खड़ा रहता है। कभी घबराता नहीं, उवता नहीं, बोरडम नहीं मालूम पड़ती, ना को ई संगी ना कोई साथी वर्षा आती है, धूप आती है तू खड़ा ही रहता है, तूझे मजा क्या है। और जब भी मैं निकलता हूं तू अकड़ा रहता है और ऐसा लगता है कि बड़ खुश है। एक दिन हिम्मत जुटा कर वह दार्शनिक उसके पास गया । दार्शनिक को हिम्मत जुटा नी पड़ती है। क्योंकि नकली आदमियों से प्रश्न पूछना बड़ा खतरनाक है। क्योंकि नक ली आदमी नाराज हो जाता है। क्योंकि उसने सभी प्रश्नों के झूठे उत्तर मान रखे हैं । अगर आप उससे प्रश्न पूछिए तो उसके झूठे उत्तर खिसकने लगते हैं। तो वह कहत है कि प्रश्न पूछो ही मत नकली आदमी सिर्फ उत्तर की मांग करता है प्रश्न की क भी मांग नहीं करता। जो आदमी उससे प्रश्न पूछता है वह कहता है गोली मार देंगे। सुकरात को इसीलिए तो जहर पिला देता है। क्योंकि सुकरात नकली आदमियों को सड़क पर पकड़ लेता है और कहता है रूको, मेरे प्रश्न का जवाब दो, और प्रश्न का जवाब नहीं और हर नकली आदमी समझता सब जवाब मेरे पास हैं । और जब पूछने वाला मिलता है तो जवाब वह जाते हैं पानी में जैसे नकली रंग कच्चा रंग ब ह जाता है। तो वह नकली आदमी था, दार्शनिक ने सोचा पूछूं या ना पूछूं कहीं नाराज ना हो ज ए लेकिन एक दिन सोचा कि चलो पूछ ही लूं, नाराज ही होगा, वह दार्शनिक उस नकली आदमी के पास गया और कहा, 'मेरे मित्र ! नकली आदमी ने गुस्से से देखा।' क्योंकि नकली आदमी किसी को मित्र देखना पसंद नहीं करता या तो आप उसके शत्रु हो सकते हैं, या उसके अनुयायी हो सकते हैं, नकली आदमी का मित्र कोई नह हो सकता। उसके शिष्य हो सकते हैं, शत्रु हो सकते हैं, नकली आदमी के मित्र न हीं हो सकते। हिटलर का कोई मित्र नहीं, मित्र बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। क्यों क मित्र जो है वह समान होने का दावा करता है, नकली आदमी किसी को समान नहीं मानता। Page 65 of 150 http://www.oshoworld.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150