Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 68
________________ भारत की खोज गा होता है। कौन दूसरा कैसा है। नकली आदमी का एक लक्षण यह भी है। स्वयं के संबंध में नहीं सोचना और दूसरों के संबंध में सोचना। असली सवाल यह है कि मैं कैसा आदमी हूं। और इसे जान लेना बहुत कठिन नहीं क्योंकि सबह से सांझ तक जन्म से लेकर मरने तक मैं अपने साथ जी रहा है। और अपने आप को भलीभांति जानता हूं। ना केवल दूसरों को. . . मेरी जो असली शक्ल है वह मैंने छिपा रखी है। और जो मेरी शक्ल नहीं है वह मैं दिखा रहा हूं वह मैने बना रखा है। दिन भर में हजार बा बदल जाते हैं। असली आदम तो वही होगा सूबह भी सांझ भी, हर घड़ी वही होगा जो है। लेकिन हम, हम अ लग नहीं वही होते हैं जो हम नहीं हैं। एक फकीर था नसरूदीन। एक सम्राट की पत्नी से उसका प्रेम था। एक रात वह अप नी प्रेमिका से विदा हो रहा है। और उसने उस स्त्री को कहा, 'तुझसे ज्यादा सुंदर स् त्री पृथ्वी पर दूसरी नहीं है। और मैंने सिर्फ तुझे ही चाहा है। मेरे कानों में बस तेरे अतिरिक्त और किसी की कामना और अकांक्षा नहीं है। वह स्त्री आनंद से भर गई। उसकी आंखें खुशी से भर गई, और तभी उस फकीर ने कहा, 'ठहर, ठहर मैं तुझे यह भी बता दूं यही बात दूसरी स्त्रियों से भी मैं कहता रहा हूं।' यह फकीर अद्भुत आदमी रहा होगा। और इस क्षण में इसने अपने नकलीपन को भ पहचाना होगा। और अपने असलीपन को भी जाहिर करने की हिम्मत की है। हम सव पहचानते हैं कि हम नकली हैं। हम जैसे दिखाई पड़ते हैं वैसे हैं, यह किसी दूस रे के संबंध में सोचने का सवाल नहीं है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे के भी तर प्रवेश नहीं कर सकता बाहर से ही देख सकता है। वाहर से जो दिखाई पड़ता है वही हम देख सकते हैं। लेकिन अपने तो हम भीतर जा सकते हैं। वहां तो हम देख सकते हैं हम कौन हैं। एक आदमी मंदिर में वैठकर माला जप रहा है, भगवान का नाम ले रहा है। वाहर से दिखाई पड़ता है वह माला जप रहा है भगवान का नाम ले रहा है। धार्मिक पूजा और प्रार्थना में तल्लीन है। हम तो बाहर से इतना ही देख सकते हैं। लेकिन वह अ दिमी भीतर से देख सकता है कि वह क्या कर रहा है? यह माला मंत्र की तरह हा थ फेर रहे हैं। यह राम का जप हाथों पर मशीन की तरह हो रहा है। भीतर क्या हो रहा है वह आदमी सच में क्या कर रहा है? मैंने सुना है एक आदमी अपनी पत्नी से निरंतर कहता था कि कभी मेरे गुरु के पास चल वह परमसाधु हैं। उनसे मुझे जीवन मिला शांति मिली भगवान का रास्ता मिल T। वह पत्नी हंसती और बात टाल देती। आखिर उस आदमी ने अपने गुरु को कहा कि, 'आप कभी आए और मेरी पत्नी को समझाएं उसका जीवन नष्ट हुआ जा रह [ है वह नर्क के रास्ते पर है। एक दिन सुबह पांच बजे वह गुरु उस शिष्य के घर प हुंचा। उसका शिष्य मंदिर में बैठकर, घर के सामने ही घर के बगीचे में ही मंदिर ब ना रखा है उसमें बैठ कर राम-राम जप रहा है माला फेर रहा है। Page 68 of 150 http://www.oshoworld.com

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