Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 64
________________ भारत की खोज गों को प्रेम करने की फूर्सत भी नहीं होती । क्योंकि दूसरे इतने जरूरी काम मालूम प डते हैं। टालता रहा, जिस दिन वार्लिन बम गिरने लगे और जिस दिन हिटलर जहां छिपा था नीचे जमीन में उसके बाहर गोलियां चलने लगीं, तब उसने खबर भेजी कि तू जल्दी आजा और पुरोहित को ले आ हम विवाह कर लें। क्योंकि अब कोई खत रा नहीं है अब मौत सामने ही आ गई है। मरने के दो घंटे पहले एक कलघरे में ए क कोई भी आदमी को पुराहित को नींद से उठा कर बुला लिया गया। और दोनों का विवाह करवा दिया उसने। और दो घंटे बाद दोनों ने जहर खाकर गोली मार दी | आदमी जीवन से इतना भयभीत हो सकता है और इंतजाम किस लिए करता है। अ और इंतजाम इसलिए करता है कि भय के बाहर हो जाए और सारे इंतजाम और भ य में गिराते चले जाते हैं। वही आदमी भय के बाद होता है जो अकेले होने की स्थि ति को स्वीकार कर लेता है। वही आदमी सुरक्षित होता है। जो इनसिक्योरिटी को, असुरक्षा को अंगीकार कर लेता है वही आदमी मृत्यु के भय के ऊपर उठ जाता है जो मृत्यु को जीवन का अंग मान लेता है। मान नहीं लेता, जान लेता है कि मृत्यु जीवन का अंग है बात खत्म हो गई। जीवन की जो तथाता है, सचनैस है, जीवन जैसा है उससे बचने का उपाय मत रए। जीवन से कैसे बच सकते हैं ? जीवन जैसा है उस जीवन के साथ वहा जा सक ता है। बचा नहीं जा सकता। बहने की कोशिश में जीवन खो जाता है। हमारे चित्त ने जीवन खो दिया। हम जीवन की धारा से बहुत पीछे खड़े हैं। एक क्षण में हम जी वन की धारा में आ सकते हैं। लेकिन भय क्या है, सुरक्षा की कामना क्या है तो य ह हो सकता है। और हमारी परंपरावादीता हमारा पुराण पंथ, हमारी पुरानी किताब पुराना गुरु हमारा उसके चरणों को पकड़े चले जाना, हमारे सिर्फ भयभीत होने क सबूत है। , यह दूसरा सूत्र आपसे कहना चाहता हूं भारत की प्रतिभा को भय का पक्षाघात है पै रालीशिस लगा हुआ है। भारत की प्रतिभा भयभीत है। वह अभय नहीं है । इसलिए वह कुछ भी जानने से डरती है । वह कुछ भी जानने से डरती है। और जहां जहां उ से डर लगता है कि कोई नई बात जानी जाएगी वहां वह देखती ही नहीं। वहां वह आंख ही नहीं उठाती। वहां से वह अपने को बचा लेती है भूल जाती है। अपने भीत र भी वह वह नहीं देखना चाहता, जिससे डर हो सकता है। वह आंख चुरा लेता है, वह भजन कीर्तन करने लगता है, वह भुला देता है कि होगा कुछ हमें मतलब नहीं है। वह धीरे-धीरे इतना भूल जाता है कि खुद का जो असली है वह छिप जाता है और खुद का जो असली है वह नकली मालूम पड़ने लगता है । हम सब नकली आदमी हैं | मैंने सुना है कि एक खेत में एक नकली आदमी खड़ा था। सभी खेतों में नकली आदमी खड़े हैं, ऐसे तो दूकानों में दफ्तरों में, आफिसों में सब जगह नकली आदमी खड़े हैं। लेकिन उनको पहचानना जरा मुश्किल है। क्योंकि वह चलते-फिरते हैं, बात Page 64 of 150 http://www.oshoworld.com

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